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________________ (३१४) - जय श्री संघपट्टकः ॐ पालण पोषण करीने काइ था जननी वृद्धि पमामी नथी के जेथी एनुं अवलूं कहेवू पण माथे नपामी ले ए प्रकारे श्रागल्यां पदने विषे पण आशंका करीने योजना करवी. वर्द्धित शब्दनो ए अर्थडे जे न मळेली वस्तुनो योग करवो ने मळेली वस्तुनी रक्षा करवी ए रुप जे योग देम इत्यादिकनुं जे करवं तेणे करीने जे शरीरनुं पोषण करतुं ते. टीकाः-नच क्रीतो मूल्यदानेनाऽन्यस्माद्गृहीतः ॥श्रधमों नच उत्तमर्णसकाशाद्धारादिप्रयोगेणार्थ गृहीतोऽधमर्णः ॥ अत्रच यैरितिकर्तृतया संबंधानुपपत्तेर्येषामिति संबंधविवक्षया यबब्दो योज्यः ॥ अर्थवशाहिजक्तिपरिणाम इतिवचनात् ॥ तेन येषां लिंगिनामयंजनोऽधमोर्थधारयितान जवति एवमुत्तरत्रापि यथासंजवं येषामिति संबंधनीयम् ॥ अर्थः-वळी लिंगधारीए था श्रावक कोई पासेथी मूख आपीने वेचातो लीधो नथी जे एनुं बोल्युं माथे नपामे वळी या जन एटले श्रावक लोक ए लिंगधारीजनो देवादार नथी जे पोतानी आज्ञा पराणे पळावे.धनादि वस्तु आपनार जे पुरुष ते नत्तमर्ण का हीए. ने जे धनादि वस्तुनो लेनार पुरुष ते अधर्मण कहीए. माटे उत्तमर्ण पासेथी नधार प्रमुख प्रयोगे करीने अर्थनो गृहण करनार एटले अधर्मण थयेलो आ जन नथी.श्रा जगाए व्याकरणादि विचार जे आ जगाए यैः ए प्रकारनुं कर्ता पद ले तेणे करीने संबंधनी सिद्धि नथी थती माटे येषां ए प्रकारना संबंधनी केहेवानी ज्ञाए करीने यत् शब्दनी योजना करवी. केम जे अर्थना वाथी वित
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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