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________________ भथ भी संघपट्टकः -- ( ९ ) कड़ीशुं पवी व्यवस्था देखामी छे, माटे संघपट्टक ए प्रकारनुं था प्रथनुं नाम स्थापन कयुं ठे. टीका- तथाप्यनिधेयादिषयवैकल्या दिद मनर्थक मिति चेतन ॥ प्रतिपादितसंघपट्टकशब्दार्थविवेचनेन त्रयस्या प्या पात् ॥ अर्थ - तो पण निधेय एटले कहेवा योग्य वस्तु, संबंध तथा प्रयोजन ए त्रण वानां कला विना या ग्रंथ निरर्थक थशे. एम जो आशंका थाय तो ते न करवी. केम जे संघपट्टक एशदानी विवेचना करी तेथे करीनेज ए त्रणे वस्तुनुं व्याकर्षण थयुं वे माटे. टीका - तथाहि प्रकरणानिधानार्थपर्यालोचनयौ द्देशिक भोजनादिदोष दर्शनद्वारेण तत्परिहाररूपा व्यवस्था ऽत्रानिधेयेति गम्यते ॥ अर्थः- तेज देखाने बे जे संघपट्ट ए नामनो अर्थ विचारी जोतां उद्देशिका दि श्रादार दोष जोवा एटले पोताना निमित्ते नोजन करावी जमे बे, इत्यादि दोष देखवाना द्वारे दोष देखीने ते दोष युक्तनो त्याग करवो ने निर्दोषनुं ग्रहण करवुं यदि शब्दे करीने जिनग्रह वासनो परिहार करवो इत्यादि रूप व्यवस्था श्रा ग्रंथमां निधेय वस्तु बे एम जगाय बे. टीका:- प्रयोजना विनानावाच्चानिधेयस्य, तदाक्षेपेण प्रयोजन मप्या क्षितं ॥ नहि निःप्रयोजनस्य पदार्थस्या निधानाय सतः प्रवर्तते तत्वहानि प्रसंगात् ॥ २
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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