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________________ अथ श्री संघपट्टक च्नो परित्याग करवो तेनी तो शी बात कहेवी. ए हेतु माटे श्रा निर्गुण गच्छे एम जाणनारने पण तेनी मर्यादाना जयथकी सद्धर्मनो अंगिकार नथी थतो माटे अतिशय बळवान एवी ए ग मुद्रा जे तेज विवेकरुपी अंकुराने ढांकी दे बे जे माटे ते वात शास्त्रमां कड़ी जे प्रमादपि मदिरावते नाश पामी बे सारी विद्या ते जेमनी एटले सारं ज्ञान जेमनुं गयुं बे एवा जे जीव जे ते बीजी रीतनों जे सारो मार्ग ते ते प्रत्ये पण जवानो उत्साह नथी करता. ते उपर तर्क थाय डे जे संसार समुद्रमां बुरुयोज रहे ते माटे गच्छ स्थितिथकी जय पामनार पुरुषो धर्मना अधिकारी तथी. माटे ए बचारा आ त्मानुं हित करवामां श्रतिशय शंकमा डे केम जे असमर्थ यया बे ए देतु माटे शास्त्रमां तो समर्थं पुरुषोज धर्मना अधिकारी कया बे. ते हेतु माटे एवो निश्चय कर्यो जे कोना प्रत्ये कहीए कोनी धाराधना करीए जेथी या बात समजे इत्यादि. या चउदमा काव्यनी अर्थ संपूर्ण थयो. ॥ १४ ॥ (३०२) टीका :- इदानीं कस्यचिदयोग्यस्याचार्यपदप्राप्त्या तद सच्चेष्टितप्रदर्शनेन श्रुतावझां ज्ञापयन्नाह ॥ अर्थः- दवे कोइक अयोग्य पुरुष श्राचार्य पढ़ने पाम्यो तेनी असत् चेष्टा देखावी तेथे करीने सिद्धांतनी अवज्ञा प्रत्ये जाणावता सता ग्रंथकार कहे बे. 10
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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