SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . - अथ श्री संघपट्टकः , (६४९ ~ ~ ~ करीने आरंन करवा तेनो दोष नथी एम जो तुं कहेतो होय तो ते न कहे. केम जे सिद्धांतना अर्थ- परिज्ञान नथी, माटे एम कहो जो ने सिद्धांतमा उत्सर्ग थकीज आरंजादि दोष करीने चैत्य सचामां एटले चैत्य संबंधी देत्र गाम आदिकनुं जे करवं तेनो निषेधज प्रतिपादन कों ने. तो ते चैत्य संबंधी खेतरगाम. होयज क्यांथी ? जे तेनी चिंता यतिने करवी पमे ने एम करतां कदाचित् को प्रकारे महा आग्रहथी कोश्क नपकादि राजाए चैत्य संबंधी गाम आदिक याप्यो होय; तेने क्यारेक कोश्पण बळवान पुरुषे ह. गतकारे लेवानो आरंन को. त्यारे संघनी लघुता थाय माटे तेनी रक्षा करवानी श्चाए साधु श्रावकने तेनी चिंता करवानी थाझा आपी . पण ज्यारे तो लोन्नादिके करीने यति पोतानी मेळे देशना छारे तेने मागी ले अथवा पोतानी मेळेज तेनी चिंता करे तो ते साधुना चारित्रपणानी अशुहताज थाय . टीकाः--तमुक्तं ॥ ननर इत्थ विनासा, जो एयाई सयंविमग्रिजा ॥ नहु होइ तस्स सुद्धी, अह कोवि हरिजएयाइंसब बामेण तहिं, संघेणं होइ लग्गियवंतुं ॥ सचरित्तचरित्तीणं एवं सवेसिकऊंति ॥ अत:कथं सस्पृहतया चैत्यारंनं कुर्वतामधुना तनमुनीनां न दोषइति ॥ यदिच संप्रति संपूर्ण जावस्तवस्याशक्यतेन तदपेक्ष्या चैत्यकृत्यचिंतनमपि महाफलमन्युपेयते तदा तेजकरजोहरणादिपरिहारेण गृहिनेपथ्यमन्युपगम्य जिनपूजनमाजियतां ॥ । अर्थः-ए हेतु माटे स्पृहाये सहित चैत्यनो श्रारंभ करनार
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy