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________________ (२२६) 8. अय श्री संघपट्टका - : परेण तदप्यपास्तं मंतव्यं ॥ केषांचिद्गृहिणां निर्धनत्वा दिना सांप्रतं यतिचिंताद्यविधानेप्यन्येषां तथोपलंनात् ॥ अर्थः-श्रा जगाए दीक्षानुं विरोधी एवं जे अव्य ने एमजे विशेषण दीधुं तेमां ा तात्पर्य जे तमे यतिने धननो अंगिकार दीक्षानो विरोधी ने माटे तेनो निषेध सर्वथा सिह कर्यो एणे करीने तमे एम जे कयु हतुं जे शास्त्रमा साधुने धन राखवानो निषेध कयों डे. तो पण इत्यादी आरंजीने श्रावक यतीनी चिंतादि करता नथी त्यां सुधी जे धननुं अंगिकार कर सिद्ध कर्यु हतुंआ कालना यतिने ते सर्वेनुं खमन थयु एम मानवू केम जे केटलाक गृहस्थोनुं निर्धनपणुं ने तेणे करीने हालमा यतिनी चिंतादिकने करी शकता नथी पण बीजा केटलाक गृहस्थो साधुनी चिंतादिकने करी शके एवा देखाय बै एवा हेतु माटे ॥ टीकाः-॥ तथाहि दृश्यंतएवाद्यापि केचिदुदाराशया ग्लानाद्यवस्थायां निरवग्रहा जिग्रहपुरस्सरं पथ्यौषधादि दानेनयतीनां संयमशरीरोपष्टंनं विदधाना:पात्रस्य अविण विसावका: श्रावकाः ॥ तत्तावतैव पर्याप्तं, किं सिद्धांत निषिद्धेनानर्थ सार्थमूलेन वित्तपरिग्रहेण ॥ अर्थः-ते देखामे जे जे आ काळमां पण केटलाक नदार चित्तवाळा श्रावक देखाय बे के जे ग्लानादिक अवस्थाने विषे श्रवग्रह रहित अनिग्रह पूर्वक पथ्य औषध आदिकनुं जे दे, तेणे करीने साधुनुं संयमरुप जे शरीर तेनो उपष्टंन करे ये एटले सा
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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