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________________ (२१२) 48. अब श्री संघपट्टा - wwwwwwwwwwwwww Amwww धनस्वीकार इति यतो धनस्वीकारं प्रविणसंग्रहमाहुब्रुवति जिना नगवंतः॥अत्र च जिनानां मिदानीमतीतत्वेनोपदेशा संनवादाहु रित्यतीत विन्नक्तिप्राप्तावपि शर्तमानप्रतिपादनं तत्तेषां स्वागमै ग्रंथसंग्रह विपाकप्रतिपादकैः स्फुरसुपतयाऽद्ययावदनुवृत्त्यनेदाध्यवसायेन वर्तमानतयावनासात्तउपदेश प्रदः र्शनेन विनेयानां धनस्वीकारं प्रत्यतिपरिजिहीर्षा यथा स्यादिति ज्ञापनार्थं ॥ एव मुत्तरपदेपि योज्यं ॥ अर्थः-ननु उपसर्गनो अकमा एटलो अर्थ था जगोए ले तेथी थाम अर्थ थयो जे श्रमो ए वात सहन करता नथी जे साधूने धननो अंगिकार करवो ते जे माटे धननो अंगिकार ए. टले संग्रह तेने जिन जगवंत, श्रागळ कही शुंए प्रकारनो कहे के ए हेतु माटे आ जगाए वर्तमान काळनो प्रयोग मूकयो ने ने जिन नगवंत तो थर गया माटे तेना उपदेशनो असंचव डे माटे आहुः ए प्रयोगने विषे अतीत काळनी विजक्ति प्राप्त थइ, पण जे वर्तमान काळy प्रतिपादन कयु डे ते तो जे अव्य तेना संग्रहनो विपाक तेनुं प्रतिपादन करनारने स्फुरणायमान रुपे करीने श्रयापि चाट्यां श्रावतां एवां जे पोतानां श्रागम एटले सिद्धांत तेनी साथे ते जिन जगवंतनुं अजेदपणाना अध्यवसाये करीने वर्त्तमानपणुंडे ते वर्तमानपणाना आन्नासथी ते सिद्धांतना उपदेशन दान दे, तेणे करीने पोताना शिष्योने धननो अंगिकार करवानी श्या प्रत्ये त्याग करवानी सिद्धांतरुप नगवंतनी श्वा ते जणाववाने अर्थे अतीत कालने ठेकाणे वर्तमान कालनो प्रयोग मूकयो जे.॥ए प्रकारे पागळ पण जाण.....
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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