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________________ (१०) 1 अथ श्री संघपट्टका योने नगवतनी श्राशातनानुं कारणपणुं ने ए हेतु माटे ने ते थोमी पण पाशातनाने अनंत नवज्रमण रुपी रोगनी वृद्धि थवानुं कार पणुं ने माटे अपथ्य नोजन तुल्य ने कोई प्रकारे श्राधाकर्मिक एवा पण निवासने विषे वसवू पण जिनघरमां तो निवास करवोज नहि ए प्रकारे निर्धार थयो. टीका:-तस्माउक्तन्यायेन यतीनां परगृहवासस्यतदानी मिवेदानीमपि दोषान्नावात्समीचीनं यतीनां परगृहवासोनुपपन्नः अनेकदोषऽष्टत्वात् प्राणातिपातवदिति साधनप्रयोगो पि अपरोदित उक्तानेकदोषनिरासासिझत्वादसिमः प्रतिपादितो जवति, स्वपक्षसाधनं तु यतीनां परगृहवासो विधेयः नि:संगता निव्यंजकत्वात् शुद्धोंडग्रहणवदिति ॥ तदेवं यतीनां चैत्यपरित्यागेनपरग्रहवसतिरेव श्रेयसी ने तरेति वृत्त ध्यार्थः ॥ ए॥ अर्थः-ते हेतु माटे अमारा कहेला न्याये करीने यतीने परघर निवास करवामां ते काले जेम दोष न हतो तेमज आ कालमां पण दोष नथी. माटे परघर निवास करवो ते ठीक डे ने तमे जे अनुमान प्रयोग को हतो जे यतिने परघर निवास करवो ते अघटित , अनेक दोषे करीने दुष्ट ने ए हेतु माटे प्राणातिपातनी पेठे एवो जे अनुमान प्रयोग ते पण रमी पमयो एटले व्यर्थ गयो।। केम जे अमे कह्या जे अनेक दोष तनुं निकारण न थतुं. माटे श्रसिक प्रतिपादन कर्यो , हवे अमारा पदमां तो अनुमान साधन शा प्रकारचें , जे यतिने परघर निवास करवो ॥ निःसंगपणाने
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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