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________________ ( १९२) .. अथ श्री संघपट्ट कः - नथी केमजे मुनिने योग्य एवी पण शुद्ध वसति आदिकने विषे ए हेतुर्नु रहेवापणुं होत तो ए हेतु अनेकांतिक केहेवात पण ते शुद्ध निवासने विषे देवव्यना उपनोगनुं लेशमात्र पण देखवापणुं नथी माटे ए हेतु अनेकांतिक पण नथी एटले व्यन्निचारी नथी. टीका:-नापि सत्प्रतिपक्षः प्रतिबलानुमानानागमोक्तत्मदिनां प्रागेव निरस्तत्वात् ॥ नापि बाधित विषयः प्रत्यक्षादिजिर नपदृतविषयत्वातू ॥ ननुप्रत्यदेणेव संप्रति जिनगृहेवासदर्शनेन ___तहासस्य धर्मिणो मुन्ययोग्यतायाः साध्यधर्मस्य हेतुविषयस्य वाधितत्वेन विषयापहारात्कथं नहेतु बाधितपिषय इतिचेन्न । . अर्थ:-वळी ए हेतु सत्प्रतिपद नथी केमजे प्रतिवादिनां अनुमान जे शास्त्रोक्त चैत्यवास ने तेनुं पूर्वे खंमन कर्यु माटे ए हेतुने हमवनार प्रतिपकीनो हेतु नथी. माटे वळी ए हेतु बाधित विषय पालो पण नथी केमजे प्रतिपक्षादि प्रमाणवमे ए हेतुनो विषय नाश पाम्यो नथी. माटे एटले प्रत्यक्ष जणाय जे जे मुनि होय ते चैत्यमां रहेता नथी माटे ए प्रकारे पांच हेत्वान्नास एटले दोष ते श्रा हेतु मां नथी माटे आ सकेनु कहेवाय प्रतिवादिना जे सर्व हेतु ते श्र.. सद्धेनु करी देखामया माटे हवे लिंगधारी आशंका करे ले जे श्रा • कालमा प्रत्यक्षपणे जे जिननुवनमां साधुनो निवास देखाय के तेणे , करीने ते साधुना निवासरुपी जे धर्म तेने मुनिनी अयोग्यतारुपी जे . साध्य धर्मरुप देवव्यनो उपन्नोग थाय ए रुपी जे हेतु तेनो विषय जेशयोग्यता तेनुं वाधितपणुं थयुं तेणे करीने विषयनो अपहार यो पहले विषय नाश पास्यो एटले अयोग्य हेतुनुं योग्यपणुं अयुं सादे
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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