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-18. अथ श्री संघपटक
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टीकाः-नचायमसिझो हेतुस्तत्र वसतां देवव्यनोगस्यो. कन्यायेन साधितत्वात् ॥ नापि विरुधः हेतोर्मुनियोग्यतयाव्याप्यस्वेहि स स्यानचैव मस्ति ॥ देवव्योपत्नोगस्य मुनियोग्यतायाः प्रागेवापाकरणात् ॥ नाप्यनेकांतिकः ॥ मुनियोग्ये पिशुद्धवसत्यादौहेतोवृत्तौ हि सत्नवेनचैवं॥तत्र देवप्रव्योपन्नोगस्य लेशतोप्यनावात् ॥
अर्थः न्याय शास्त्रमा पांच प्रकारनो हेत्वानास डे एटले हेतु जेवा जणाता होय पण हेतु नहि, खोटा हेतु. तेनां नाम जे एक तो श्रसिद्ध,बीजो विरुझ,अने त्रीजो अनै कांतिक अथवा सव्यनिचारी, चोथो सप्रिपद अने पांचमो बाधित ए पांच प्रकारना हेत्वानासमांनो एक हेत्वानास जे अनुमान प्रयोगमांन आवतो होयते अनुमान प्रयोग साचो कहेवाय ने बीजो जुठो कहेवाय एटले अप्रमाणिक कहेवाय माटे श्रा जगाए मुनिने जिनजुवनमां निवास करवो देवव्यनो उपजोग थाय ए हेतु माटे ए प्रकारना अनुमान प्रयोगने विषे ए पांच प्रकारनो हेत्वान्नास डे तेमांनो एके पण श्रा. वता नथी. के जेथी ए प्रयोग खोटो थाय. ए प्रकारनी दृढता टी. काकार करे ले जे चैत्यमा रहेनारने देवमुच्यनो उपजोग थाय ए हेतु असिफ नथी केमजे तेमा रहेनारने देवव्यनो उपजोग पूर्वे कहो एवे न्याये करीने सिझ थाय ने ए हेतु माटे. वळी ए हेतु वि. रुड पण नथी. केमजे देवव्यनो नपनोग मुनिने योग्य नथी एम पूर्वे निषेध देखाम्यो डे माटे मुनिनी योग्यताए सहित जो ए हेतु होय एटले मुनिने देवभव्य जोगववान शास्त्रमा जो होय तो ए हेतु विरुद्ध थाय पण ते तो नथो माटे, ने वळी एहेतु अनेकांतिक पण