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________________ -18 अथ श्री संघपट्टकः अर्थः- आचरणा पण जे तीर्थंकरनी श्रज्ञाने श्रविरुद्ध होय ते प्रमाण गाय बाकी बीजी तो तीर्थंकरनी आशातना दे || ( १६४ ) टीका :- यदप्यत्राशहा चरितवाद्या चरितलक्षणोपपादनं तदवयं ॥ तथाहि ॥ कालाद्यपेक्षया गुरुलाधवचिंतया यशद्वैरियमाचरणा व्यधायीत्यवादि जवताव तत्रनताव दुत्सूत्रा चरशापराणां कालापेक्षा परित्राणाय || अर्थः-वळी जे तें यहीं शव पुरुषे जे श्राचरण कर्यु इत्यादि श्राचरण लक्षणनुं जे प्रतिपादन कर्यु ते पण दोष नरेलु बे तेज कही देखा ने जे कालादिकनी अपेक्षाये करीने तथा गुरूलाघवना विचारे करीने शह पुरूषोए चैत्यवासनुं श्राचरण कर्यु बे एम जे तमे कहयुं. तिहां पण उत्सूत्र आचरणाने विषे तत्पर एवा जे पुरुष तेने कालादिकनी अपेक्षा करवी ते कां रक्षण मणी नथी. टीका:- तथाच तन्निर्युक्तिः पंचसीए चुलसीए तझ्या सिद्धिं मस्त वीरस्स ॥ श्रवठियापदि दसनरनयरे समुप्पन्ना ॥ अर्थः- वली तेनो नियुक्तिकारे को वे जे. टीका:- तथाचा नयोगथयो व्यक्तदृष्टयुत्पाद जवदुपदशितार्यरक्षित प्रकल्पित चैत्यवासयोः कालमानं पर्यालोच्यमानं न घटांप्रांचतीति कथं न विरोधः ॥ किंच सिद्धांतात् साक्षाद
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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