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________________ 9. अथ श्री संघपट्टकः (१६१) AAAAAAAA हेवं ते विरुद्ध थात एटले ए प्रकारचें कहे, न थात एवं कहवाथीज निश्चय थाय जे जे साधु निवास रहीत ने तेज निश्राकृत . टीकाः-एवं च चैत्यवास इदानींतनमुनीनामुचित श्राग. मोक्तत्वादिति हेतुरुक्तन्यायेना गमोक्तत्वस्यासिद्धत्वादसिधः॥ यदप्युदितंमा सैत्सीत्सादासिकांताच्चैत्यवास स्तथापि गीतार्थाचरित्वा त्सेत्स्यतीति यच्चतस्यैव च श्रीमदार्य रक्षितपादैरित्यादिमा च्छवास सएही त्यंतेन समर्थनं तदप्य संगतं ॥ अर्थः-वळी ते कयुंजे या कालना मुनिने चैत्यवास करवो 'उचित , आगममां कडं ठे ए हेतु माटे एम जे स्थापन कयु हतुं ते पूर्व कही देखामयो एवा न्यायथी भागममां कहेवापणुं असिक थ, माटे ए हेतु पण असिक थयो एटले खोटो थयो आगममा चैत्यवास करवानो कोई जगाए कह्योज नथी वळी तें कह्यु जे सादात् सिझांतमां चैत्यवास कयो नथी तो पण गीतार्थ पुरुषे आच. रण कर्यो जे तेथी सिद्ध थशे जे माटे थार्यरक्षित आचार्य इत्यादि श्रारंनीने “ च्छवाससएही ” त्यां सुधचैत्यवास करवानुं समर्थन कर्यु ते पण असंगत अघटतु . टीकाः-च्छवास सएहीत्याद्याप्तोपदेशस्य नगवत्प्रणोता गमेष्वनुपलंनात् ॥ मूलागमेन विरोधाच ॥ तथाहि ॥ श्रीमदार्यरक्षितपादेषु स्वर्गगतेषु प्रागेव प्रतिवादि निराचिकीर्षया । मथुरापुरीप्रेषितेन गोष्टामाहिलेन जनपरंपरया गुरूणां स्वर्ग गमनं उर्बलिकापुष्पमित्रस्य सूरिपदप्रतिष्टा माकर्ण्यदर्पोध्धुर
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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