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________________ * अथ श्री संघपट्टकः 8 ( १५०) अर्थः- या कल्पनायना वचनमां अवसन्नादिक ते निश्राकृत एवं जे चैत्य तेमांज वंदन करवा जाय बे एम कहां माटे बीजी जगाऐ रहेता एवा ते पासस्था दिक तेमने ते निश्राकृत चैत्यने विषे जवानो संजय बे, ने जो ते चैत्यमांज रहेता होततो यतिने अर्थे बाहिर मंप कर तथा तेमनुं चैत्यने विषे वंदनने अर्थे श्राव एबे वाना घटे नहीं केम जे ते जो चैत्यमां रहेता होततो तेमने मंप करत नहीं ने तेमने पोताना स्थान थकी चैत्यमां श्राववुं पण न कहेत माटेज श्रागम वचने करीने निश्राकृत शब्दनों अर्थ विचारी जोतां श्रागमने विषे निश्राकृत शब्द कहेवाने मिषे यतिने चैत्यवास करवो एम सिद्ध यतुं नथी. टीका: - निस्सकमइत्यादिनाहि राजनिमंत्रादिषु पुष्टालंबनेन प्रत्यासन्नग्रामादेर्निश्राकृत चैत्ययात्राद्यवसरे: समागतानां सुविहितानां वंदन विधिरनिहितः॥वस्तुतस्तुत्सर्गेण तत्र पार्श्वस्थादि संसर्गपरिजिहीर्षया प्रत्यवंदनमपि निवारितमेव || अर्थः- निस्सकम इत्यादिके करीने तो कोइक राजानुं निमंऋण आदिककार्य प्राप्त थयुं होय तो पुष्टालंबन जाणीने समीप रहेला are frera चैत्यनी यात्रादिकना श्रवसरने विषे खाव्या जे सुविहित तेमनो वंदन विधि को बे ने वस्तुताये तो नत्सर्गथी त्यां पासथ्यादिकनो संबंध थाय तेनो त्याग करवा माटे निरंतर ते चैत्यमां वंदन करवानुं पण निवारणज कर्यु बे. टीका:~ तत्थासो जहसु निस्समिति कल्पनाप्यवचनातु ॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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