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________________ 6. अथ श्री संघपट्टका - (११५) अर्थः-हवे बीजे प्रकारे श्राधाकर्म शब्दनो अर्थप्रगट करतां जयने उत्पन्न करवं तेणे करीने ए आधाकर्म जोजन अवश्य त्याग करवा योग्य जे एम देखामे . यथा शब्दनो प्रकार एटलो अर्थ करवो, एटले जे प्रकारे जे जोजनने जमीने मुनि संयमथी हेग्ल थाय २ (ज्रष्ट थाय ) श्रथवा अधोगति (नरकने) पामे डे एणे करीने श्राधाकर्म शब्दना बे अर्थ प्रगट करता जे प्रकरणना कर्ता तेणे बीजा पण बे अर्थ सूचना कर्या . ... टीका-यथात्मन्नमिति ॥ श्रात्मकर्मेतिच॥ तत्रात्मानं चारित्रात्मानं हंति श्रात्मघ्नं ॥ श्राधाकर्मनोजिनो हि तावत्पाकारंजानुमत्यादिनिश्चारित्रात्मा हन्यते॥ तथा श्रात्मनि कर्मश्रात्म कर्म श्राधाकर्म । परिणतो हियति रेषणीयमपि गुह्णन् गृहिणा स्वार्थं पाकारंजादि यत्कर्म निर्तितं तदहोमत्कृते शोजनमिदमन्नं निष्पन्न मिति परितोषादात्मनि निवेशयति तेन च बध्यत इतिजवत्यात्मकर्म ॥ अर्थः-ते कहे जे जे एक तो श्रात्मन ने बीजो श्रात्मकर्म, तेमां चारित्र रुपी श्रात्माने हणे माटे श्रात्मन्न कहीए. केम जे श्राधाकर्म नोजिनो चारित्र रुपी श्रात्मा ते पाकना श्रारंजनी अनुमोदना करवी इत्यादिकवमे हणाय . वली श्रात्माने विषे जे कर्म ते श्रात्मकर्म कहीए. केमजे श्राधाकर्म ग्रहण करवा तत्पर थयो जे यति ते एषणीय जोजन- ग्रहण करतो सतो पण गृहस्थे पोताने श्रर्थे पाकादि जे काश् आरंन कर्म नीपजाव्युं तेने एम माने ले जे अहो आ गृहस्थे मारे अर्थे ा सारं अन्न नीपजाव्यु ले एम मानीने घणा संतोषथी (आनंदथी) पोताना श्रात्माने विषे तेनो
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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