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________________ 48. अथ श्री संघपट्टका : (१०३ ) MAAAAAAN न्यतर गणधर बीजी पोरुषीमां देशना करे ते प्रकारे या कालना श्राचार्योने पण धर्मदेशनादिकने विषे ते उपर बेसबुं ते ठीक . टीकाः-अत एव नगवान् दशपूर्वधरः श्री वैरस्वामी, अहो नगवतः सर्वातिशायिनी व्याख्यालब्धिः किंतुन तादृशी रूपसंपदिति राजांतःपुरावचनाकर्णनानंतरं द्वितीयेन्हि नैस- . गिकी शरीरसौंदर्यसंपदमावि व्य यत्यऽनुचितमपि हिर-... एमयकुशेशयमध्यास्य प्रवचनप्रनावनायै संसदि धर्मकर्मकथां .... प्रथयांबवेति ॥ ततः सिझमिदमाचार्याणां गब्दिकाद्यासन . मुपादेयं, प्रवचनप्रनावनांगत्वान्, सम्मत्याद्यध्ययनवदिति॥॥ ... अर्थ:-एज कारण माटे नगवान् दश पूर्वधर श्री वयरस्वामी तेमने देखीने राजाना अंतेउरनी स्त्रीओए एम का जे अहो नगवान् वयरस्वामीनी व्याख्यान लब्धि तो सर्व करतां अतिशे पण तेवी का रूप संपत्ती नथी एवं वचन सनिलीने त्यार पठी बीजे दिवसे पोतानी स्वानाविक शरीर सुंदरता संपत्ति प्रगट करीने यतिने अघटित एवं पण सोनामय कमल तेने विषे बेसीने प्रवचननी प्रनावना थवाने अर्थे सन्नामा धर्म देशना विस्तारता हवा ए. कारण माटे ए वात सिद्ध थइ जे आचार्योंने गादी आदि आसन ग्रहण करवं, केमजे प्रवचननी प्रनावनानुं अंग ए हेतु माटे संमति आदिक शास्त्रना अध्ययननी पेठे जेम संमत्यादिकनुं अध्ययन डे ते प्रवचननी प्रजावनानुं अंग तो आचार्यने करवा योग्य ले तेम. टीका तथा सावधं सपापमाचरितं श्राचरणा गृहिणां नियतगगनजनादिलक्षणं ॥ तत्रादर आग्रहः। श्राचरणा हि ।
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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