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________________ १९६) 8. अथ श्री संघपट्टका - जो तमे कहेता हो तो ते न कहे केम जे आधार्मिक तथा स्त्री संबंध जेमां ने इत्यादि दोष समूह रहित जे जिन घर निवास तेनो लान थये उते आधार्मिक निवास करवो ते अत्यंत अघटतोज ॥ टीकाः-को ह्युन्मत्तः पथ्याशनावाप्तावपथ्यमश्नीयात् ॥ तस्मात्परगृहवसतिरसमीचीनाऽधुनातनयतीनां य स्त्वागमे परग्रहवासः श्रूयते स तात्कालिकातिसात्विकयत्यपेदयेति ॥ तथा च प्रयोगः॥ यतीनां परग्रहवासोऽनुपपन्नः ॥ अनेक दोष . दुष्टत्वात् प्राणातिपात वदिति ॥ - अर्थः-केमजे कोण उन्मत्त पुरूष पथ्य नोजननी प्राप्ति थये बतें अपथ्य लोजन जमे ते माटे आ कालना मुनियोने परघरमां निवास करवो ते ठीक नहीं, ने जे आगममां परघर निवास करवो एम संजळाय , ते तो ते कालना अति सात्विक धीरजवाळा जे मुनि, तेनी अपेक्षाए , वली ते उपर अनुमान प्रयोग पण सिक थाय जे जे यतियोन परघरमां रहे ते अघटित . केम जे ते श्रनेक दोषे करीने पुष्ट डे ए हेतु माटे प्राणातिपातनी पेठे जेम प्रापातिपात ले ते अनेक दोष पुष्ट ले तो यतिने करवा योग्य नथी, तेम परघर वास परा करवा योग्य नथो. टीका:-तथा स्वीकारः स्वसत्तापादनं केम्वित्याह ॥ श्रयोजविणं गृहस्थः श्रावकः चैत्यसदनं जिनायतनं ॥ ततोर्थ: श्चेत्यादि इंधः तेषु ॥ तत्र अव्यस्वीकारस्यागमे निषिद्धत्वेऽपि सांप्रतिकयतीनां तत्स्वीकारो युक्तः ॥ तमंतेरेण ग्लानपरचक्रलिकाद्यवस्थायां नैषज्यपथ्यायनुपपत्तेतहिना च धर्म
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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