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________________ 8. अथ श्री संघपट्टकः - अर्थः-श्रा जगाये बीजो स्त्री संसक्त निवासने विषे जो साधु निवास करे तो पूर्वे गृहस्थपणामां स्त्री साथे अनुन्नव करेखो जे विलास तेनुं स्मरण थq इत्यादिके करीने चोथा व्रतना नंगनो प्रसंग थाय तेणे करीने, ने बीजो शुरू निवासनो लाज न पाय तेथी पतिने श्राधाकर्मिक निवास तेनी आज्ञा करेली .ने प्रामादिमां रहेनारने तो स्त्री संबंध रहितने शास्त्रमा कहेला जे सर्व गुण तेणे सहित एवो निवास मळवो उर्लन , केम जे घरना अं. दरमां तो स्त्रीयोना शब्द सांनळवानों संचव ए हेतु माटे महासाधुए परघर वास न करवो. . टीकाः-जिनगृहवासे तु यतीनां न तथासंसक्तिसंन्नवः, चैत्यवंदनार्थमेव क्षणमात्रमागत्य गंत्रीणां श्राविकादीनां यतिनिः सह तथा विधप्रसंगानुपपत्तेः ॥ नच एका मूलगुणेसुमित्याद्यागमबलेन प्रत्युत स्त्रीसंसक्तवसतित्यागेना धार्मिकवसतिवासो यतीनां संगतो, न तु जिनगृहतास इतिवाच्यं ॥ श्राधाकर्मस्त्रीसंसक्त्यादिदोषजालरहितजिनगृहवासलान आधाकमवसतिवासस्यात्यंतमनुचितत्वात् ॥ . अर्थः-जिन घरमां निवास करे त्यारे तो यतिने ते प्रकारना स्त्री संबंधनो संजव नथी केम जे चैत्यवंदनने अर्थेज क्षण मात्र आवीने जनारी एवी श्राविकादिक साथे यतिने ते प्रकारनो प्रसंग नथी थतो जेवो तेना घरमा रहे थाय ने तेवो वली “ एका मलगुणेसुं” इत्यादि आगमना बले करीने उलटो स्त्री संबंधरहित निवासनो त्यांग करवी तेणे करीने आधार्मिक निवास साधुने करवानो संनव्यो, पण जिनघरमा रहेवा- संनव्यु नहीं.ए प्रकारे P .
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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