________________
(१४)
-18 अथ श्री संघपट्टकः
थवा योग्य एवं हृदयनुं रहस्य कहुं हुं ते सांजळो जे साधुने त्रिनुं समीपपणुं निश्चे नज करवु केम जे हरिणना जेवां जेनां नेत्र बे एवी स्त्री नेत्ररूपी तीखा शस्त्रना प्रहारवमे उपशमरूप बखतरनो नाश करे बे ने उत्तम पुरुषनां पण मन हरे बे.
टीका:- अत एव निशीथे पंचमोद्देशके एकद मूलगुणेसुं विसुद्धा इत्थि सारिया बीया ॥ तुहारोवणवसही, कारणि तहि कत्थ वसियां ॥ त्र तुल्लारोवपत्ति ॥ उत्सर्गेणोन्नयोरपि वसत्योर्वासे तुल्यं प्रायश्चित्तमित्यर्थः ॥ यथापवादे क्व वस्तव्यमितिप्रश्ने || हवा गुरुस्स दोसा, कम्मे श्वरीय हुंति ससिं ॥ जइ ए तवोवणवासं, वसंत लोगे छा परिवार्ड ॥
अर्थ :-- एज हेतु माटे निशीथने विषे पांचमा उद्देशामां कघुं बे जे एक निवास तो मूल गुणने शुद्ध राखे एवो नथी ने बीजो निवास स्त्री संसक्तिवाळो बे, माटे ए बेमां निवास करतां तुल्य प्रायश्चित्त के कारण पके त्यारे ते बेमांथी कीयामां रहे, ए जग्याए तुल्लारोवल ए शब्दनो अर्थ टीकाकार कहे बे जे उत्सर्ग मार्गे वे ए निवासने विषे रहेनारने पण तुल्य प्रायश्चित े. अथ अपवाद मार्गे क्यों रहे एम शिष्ये प्रश्न कर्तुं त्यारे गुरु कड़े ने जे
टीका:--त्र इतरस्यां स्त्रीसंसक्तायां वसतौ वासे प्रागनुनूत विलसितस्मृतिकरणा दिना चतुर्थत्रतजंगप्रसंगेनाऽन्यशुद्धवसत्यलाजेन च यतीनामाधाकर्मिक्यपि वसतिरनुज्ञाता ग्रामाद्यंतर्वसद्भिश्च स्त्रीसंसक्ति वियुता श्रुतोक्त निखिलगुणयुता दुरापा वसतिः ॥ चंतत स्त्रीशब्दश्रवणस्यापि संभवात् ॥