SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८४) 8. अथ श्री संघपट्टकः - तथा लक्षण युक्त जे साधुने रहेवानां स्थान तेनो उल्लेद थयो एम जाणीने साधुने चैत्यवास कराव्यो बे. टीकाः-कुत एतदवसितमिति चेत् ॥ श्राप्तोपदेशात् ॥ तथाहि ॥ छवाससएहिं वीसुत्तरोहिं, सिडिं गए महावीरे ॥वुच्छिन्नं च जणं, पिहीवंसाश्यं गणं ॥बलमेहाबुद्धीणं, हार्णि नाऊण सुविहियजणस्त ॥ चेश्यमग्यावासो पकप्पियो अजारकेटिं। अर्थः-वली लिंगधारी सुविहित प्रत्ये बोल्यो जे, जो तमे एम कहेता हो जे क्याथी ए वातनो निश्चय कर्यो ? तो कहीए बीए जे हितकारी मोटा पुरुषना उपदेशथी ते देखामीए बीए जे महावीर स्वामी सिकि गया पली बसें ने वीश वर्ष थयां त्यारे यतिने रहेवा योग्य स्थानक उच्छिन थयां ने सुविहित जननां बल, बुद्धि, अने मेधानी हानि थई ते जाणीने आर्यरक्षित आचार्थे चैत्यमां निवास कटप्यो . टीका-न चागमाविरोधिन्याचरणा प्रमाणं, श्यं तु न . तथेति वाच्यं श्रागमाविरोधस्य निस्सकमेत्यादिना समर्थितत्वात् ॥ गीतार्थाचरणा चागमं प्रमाणयन्निरवश्यमन्युपेतव्या ॥ यदुक्तं ॥ अवलंबिऊण कर्जां, जंकिंची आयरंति गीयथ्था ॥ . थोवावराहबहुगुण, सवेसिं तं पमाणंति अर्थः-वली लिंगधारी सुविहित प्रत्ये कहे जे जे जो तमे एम कहेता हो जे श्रागमने विरोध न आवे एवं आचरण प्रमाण के श्रने बातो तेवी रीते नथी माटे प्रमाण नथी तो तेनो उत्तर
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy