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________________ •8. अथ श्री संघपट्टा सर्वदावस्थानं ॥ इह केचित् सप्तशीलतयोद्यतविहारं कर्तुमशक्नुवंतो यतीनां चैत्ये सर्वदावस्थानं युक्तमिति प्रतिपेदिरे।। ..... अर्थः-वली जिनराजनुं घर एटले चैत्य तेमां साधुने निरंतर रहे एमने लिंगधारी साधुनो धर्म देखामे , तेमां केटसाक थति सुखसीलिया थया ने ते माटे उग्र विहार करवाने असमर्थ थया माटे साधुने निरंतर चैत्यमा रहे ते युक्त , एम अंगिकार करे , तेमां सिद्धांत विरुद्ध नाना प्रकारनी युक्ति देखाके ले. . टीकाः-तथाहि आधुनिकमुनीनां चैत्यवासमंतरेण उद्यानवासो वास्यात्, परगृहवासो वेति, घ्यी गतिः ॥ तत्र परग्रहवासोऽये निराकरिष्यते ॥ स्त्रीसंसक्त्याद्याधाकर्मिकादिदोषकलापन्नावात् ॥ अर्थः-ते युक्ति टीकाकार कही बतावे जे. जे था कालना मुनिने चैत्यवास विना उद्यानमा रहेवू अथवा परघरमा रहेवू ए बे प्रकारनी गति , तेमां स्त्रीनो संसर्ग थाय तथा आधार्मिक आदि घणा दोष उत्पन्न थाय ए हेतु देखामीने परघर रहेवार्नु भागल खंगन करीशुं ने उद्यानमा रहेवार्नु हाल खंमन करीए बीए. ... टीकाः-उद्यानवासो यतीनां युक्त इति चेन्न ॥ तत्रापि नूतनचूतांकुरास्वादकूजत्कलकंठपंचमोद्गारेण उन्मीलहिचकिलबकुलमालतीपरिमलेन च समाहितमनसामुत्कलिकादर्श. नात् ॥पंचमोद्गारादीनांचोहीपन विनावकत्वेन जरतादिशास्त्रः ऽनिधानात् ॥ अर्थः-लिंगधारी सुविहित प्रत्ये जे बोल्या तमे साधुने उद्यान
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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