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________________ 48. अथ श्री. संघपटकः - ॥ यमुक्तं । नियकङ यरकजांब, जे पमुतूण के क्सिंतिपरकमां नियकां क, ते सु सप्पुरिसया वसर ... अर्थः-ने श्रा परोपकार तो पोतानुं कार्य मूकीने पण श्रवश्य करवा योग्य वे, जे माटे शास्त्रमा कयु जेजगतमा केटलाफ पुरुषो परकार्यनी पेठे पोतानुज कार्य मुकीने पोताना कार्यनी से पारकुं कार्य करे ने एवा परोपकारी पुरूषने विषे सरपुरुषता निल वास करे . . टीका-तस्मायतीनामाधाकर्मिकनोजनमपुष्टं, संयमशारीरोपष्टंनकत्वात् ॥ कल्पग्रहणवत् ॥ शुकनोजनका.. तथा पतिनिराधाकर्मिकनोजनं विधेयं, श्राफझाडिहेतु: धर्मदेशनवत् ॥ इति प्रयोगावप्युपपद्यते ॥ ... .. अर्थः-ते हेतु माटे यतिने श्राधाकर्मिक जोजन कर, ते निर्दोष के केम जे संजम शरीरने राखनार ने ए हेतु माटे कल्प (वस्त्र) ग्रहण पेठ, एटले जेम वस्त्रादि ते संयम शरीरनु पुष्टालंबन डे, तेम आधार्मिक नोजन पण बे, अथवा जेम शुकमो. जन शरीर संयम शरीरने राखनार , तेम आधार्मिक नोजम पण . वली तेमज साधुए आधार्मिक नोजन पण करवा योग्य , केम जे श्रावकनी प्रजा वधवामां कारण डे ए हेतु माटे धर्म देशनानी पेठे जेम धर्म देशना बे, ते श्रावकनी श्रद्धा वधवामां कारणाने माटे साधुने करवा योग्य , तेम ए प्रकारे अनुमान प्रमाणना पण बे प्रयोग था स्थलमा सिद्ध थाय . टीका-तथा जिनानामहतां गृहमायतनं तत्र वासः ए देता कार माम देशना - .. - - - - - .:.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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