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________________ ४६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज चरितेतर महाकाव्यों में कवि स्वच्छन्दता पूर्वक काव्य पक्ष की सौन्दर्य वृद्धि पर अधिक बल देता है। परिणामतः महाकाव्यों में भोग-विलास आदि के विस्तृत वर्णनों से चरितेतर महाकाव्यों में आध्यात्मिक दृष्टि गौण रह गई है। वात्स्यायन के कामसूत्र से सम्बद्ध भोग-विलास, क्रीडा-विहार तथा मद्यपान आदि वर्णनों से चरितेतर महाकाव्य विशेष रूप से प्रभावित हैं। हम्भीर महाकाव्य जिसमें प्राद्योपान्त वीररस का ही परिपाक हुआ है, उसमें भी कवि नयचन्द्र ने शृङ्गार रस के लिए अस्वाभाविक दृश्यों की संयोजना की है। वास्तव में १०वीं शती के उपरान्त सामन्तवादी साहित्य प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में काव्य सम्बन्धी एक नवीन मान्यता उदित हो चुकी थी। इस मान्यता के अनुसार शृङ्गार रस से वंचित काव्य लवणरहित भोजन के समान माना जाने लगा।' जैन संस्कृत चरितेतर महाकाव्यों का प्रारम्भ दसवीं शती के हरिचन्द्रकृत 'धर्मशर्माभ्युदय' से होता है। महत्त्वपूर्ण जैन संस्कृत चरितेतर महाकाव्य निम्नलिखित हैं-(१) हरिचन्द्रकृतधर्मशर्माभ्युदय (१०वीं शती ई०), (२) वाग्भटकृत-नेमिनिर्वाण (१०७५ ई०), (३) अभयदेवकृत -जयन्तविजय (१३वीं शती ई०) आदि । इनके अतिरिक्त 'सन्धान' तथा 'पानन्द' नामान्त महाकाव्य भी इसी विभाग में समाविष्ट किए जा सकते हैं। (३) जैन संस्कृत सन्धान महाकाव्य सन्धान महाकाव्यों की रचना जैन कवियों की संस्कृत साहित्य को अभूतपूर्व देन है । सन्धान महाकाव्यों का सृजन करते हुए कवियों ने 'श्लेष' अलङ्कार का अधिकाधिक लाभ उठाया है। संस्कृत शब्दों के अनेकार्थक होने के कारण भी जैन कवियों ने एक ही पद्य में दो या अधिक कथानों की समानान्तर संयोजना की है। जैन मान्यता के अनुसार अनेकार्थक काव्य की परम्परा का श्रीगणेश वसुदेव-हिण्डी कृत--'चत्तारि अट्ठ गाथा' (पांचवीं-छठी शती ई.) से माना जाता है। जैन संस्कृत सन्धान-महाकाव्यों की परम्परा में धनञ्जय कृत 'द्विसन्धान' महाकाव्य (८वीं शती ई०) ही सर्वप्रथम जैन संस्कृत सन्धान महाकाव्य है । इसके अतिरिक्त जैन कवियों ने 'त्रिसन्धान', 'चतुस्सन्धान', 'पंचसन्धान', 'सप्तसन्धान' तथा 'चतुर्विशतिसन्धान' काव्यों का निर्माण कर 'सन्धान' काव्य परम्परा को समृद्ध बनाया। १. रसोस्तु यः कोऽपि परं स किञ्चिन्नास्पृष्टशृङ्गाररसो रसाय । सत्यव्यहोपाकिमपेशलत्वे न स्वादु भोज्यं लवणेन हीनम् ॥ हम्मीर० १४.३६ । २, नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० २३४
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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