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साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य
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सन्धान महाकाव्यों में दो या दो से अधिक कथाएं एक साथ चलती हैं, 'द्विसन्धान'' महाकाव्य में राम एवं पाण्डव कथा 'सप्तसन्धान' महाकाव्य में ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर, राम एवं कृष्ण इन सात महापुरुषों की कथाएं समानान्तर रूप से निबद्ध हैं। अलंकृत शैली के सन्धान महाकाव्यों में प्रमुख महाकाव्य दो हैं—(१) धनञ्जय कृत 'द्विसन्धान' (८वीं शती ई०), एवं (२) मेघविजयकृत 'सप्तसन्धान' (१७०३ ई०)। (४) जैन संस्कृत आनन्द महाकाव्य
संस्कृत साहित्य में 'पानन्द' नामान्त से काव्य, नाटक आदि की रचना करने की परम्परा अत्यधिक प्राचीन है। 'पानन्द' नामान्त काव्यों में सर्वप्रथम पतञ्जलिकृत-'महानन्द' काव्य था। तदनन्तर रामचन्द्र कृत-'कौमुदीमित्रानन्द' नाटक (१२ वीं शती ई०), नेपाली कविकृत-'भारतानन्द नाटक' (१४वीं शती ई०), पाशाधरभट्टकृत-'कोविदानन्द' (१७वीं शती ई०), वेण्कटाध्वरि कृत-'प्रद्युम्नानन्द' अप्पयदीक्षित कृत-'कुवलयानन्द' (१७वीं शती ई०) तथा श्रीपति कृत'टोडरानन्द' आदि ग्रन्थों का निर्माण समय समय पर होता रहा है ।२ प्रमुख 'प्रानन्द' नामान्त जैन संस्कृत महाकाव्य हैं- (१) वस्तुपालकृत 'नरनारायणानन्द' (१३वीं शती ई०) तथा (२) अमरचन्द्रसूरिकृत 'पद्मानन्द' (१३वीं शती ई०)। (५) जैन संस्कृत ऐतिहासिक महाकाव्य
बाणभट्ट के 'हर्पचरित' (७वीं शती ई०) से संस्कृत ऐतिहासिक काव्यों की परम्परा प्रारम्भ होती है। तदनन्तर पद्मगुप्त के 'नवसाहसाङ्कचरित' काव्य (१००५ ई०), बिल्हणकृत-विक्रमाङ्कदेवचरित' महाकाव्य (१०८५ ई०), कल्हणकृत-'राजतरङ्गिणी' काव्य (१२वीं शती ई०) का ऐतिहासिक काव्यों की परम्परा में विशेष स्थान है । जैन कवियों ने भी संस्कृत ऐतिहासिक काव्यों तथा महाकाव्यों की रचना की । महाकाव्यों में सर्वप्रथम हेमचन्द्रकृत-'द्वयाश्रय' (१२वीं शती ई०) है । 'द्वयाश्रय' में वर्णित चौलुक्य कुमारपाल (१२वीं शती ई०) एक ऐतिहासिक व्यक्ति है तथा इस महाकाव्य में वर्णित घटनाएं भी बहुत कुछ समसामयिक हैं । तत्कालीन गुजरात की राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के इतिहास दिग्दर्शन के लिए 'द्वयाश्रय' महाकाव्य का विशेष महत्त्व है । इसी प्रकार महामात्य वस्तुपाल के जीवन चरित को लेकर लिखे गए सोमेश्वरकृत-कीर्ति कौमुदी' (१३वीं शती ई०) तथा बालचन्द्रकृत- 'वसन्त विलास' महाकाव्य (१४वीं
१. द्विसन्धान, १.८ २. वाचस्पति गैरोला, संस्कृत साहित्य का इतिहास, वाराणसी, १९६०,
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