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________________ ३६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज तदनन्तर उन्हें वर्णनात्मक शैली द्वारा महाकाव्य का अन्तिम रूप प्राप्त हो जाता है। कभी कभी इन महाकाव्यों के निर्माण में एक से अधिक कवियों का योगदान भी रहता है। विकसनशील महाकाव्य किसी समय विशेष में लिखी रचना नहीं अपितु काल के विविध युगों से इसका सम्बन्ध रहता है।' यूरोप के 'इलियड' (Iliad) तथा 'प्रॉडेसी' (Odyssey) तथा भारतीय 'रामायण' एव 'महाभारत' इसी धारा के उदाहरण हैं । इनके अतिरिक्त इंग्लैण्ड का 'बियोवुल्फ' (Beowulf), जर्मनी का 'निबेलुगेनलीड' (Nibelungenlled) फ्रांस का 'सांग आफ द रोलां' (Song of the Ronald) आदि अन्य देशों के विकसनशील महाकाव्य हैं। 3 (ख) अलंकृत महाकाव्य प्रायः विकसनशील महाकाव्यों पर आधारित होते हुए प्रथम धारा के महाकाव्यों से स्रोत ग्रहण करते हैं। किसी कवि विशेष द्वारा किसी समय विशेष में इनका निर्माण होता है। अलङ्कृत महाकाव्यों की विशेषता है कि इन महाकाव्यों में प्रथम धारा के महाकाव्यों की अपेक्षा कृत्रिमता अधिक होती है तया कवि का उद्देश्य सामाजिक प्रादर्शों की संस्थापना की अपेक्षा काव्य तन्तुओं को प्रश्रय देना मुख्य होता है। दूसरे शब्दों में विकसनशील महाकाव्य काव्य सौष्ठव के प्रति उदासीन रहते हुए सामाजिक मूल्यों के प्रति सजग रहते हैं तो अलंकृत महाकाव्यों का शिल्पवैधानिक दृष्टि से काव्य सृजन मुख्य उद्देश्य रहता है तथा सामाजिक मूल्यों के संरक्षण के प्रति गौण दृष्टि रहती है।४ ___वजिल का 'इनीड' (Aeneid) तथा मिल्टन का 'पैराडाइज़ लास्ट' (Paradise Lost) प्रादि पाश्चात्य महाकाव्य५ तथा रघुवंश' 'किरात'६ आदि भारतीय महाकाव्य अलंकृत महाकाव्यों की शैली के अन्तर्गत हैं। द्विविध पाश्चात्य महाकाव्य धारा के सन्दर्भ में जैन पुराण तथा महाकाव्य भारतीय साहित्य की वैदिक, जैन एवं बौद्ध-तीनों धाराओं में 'महाकाव्य' १. Sidhant, The Heroic Age of India, pp. 70-76; शम्भूनाथ सिंह, हिन्दी साहित्य कोश. भाग-१.५० ६२७ २. Sidhant, The Heroic Age of India; pp. 70-76 ३. वही, पृ० ७०-७६, तथा हिन्दी साहित्य कोश, भाग-१, पृ० ६२७ ४. हिन्दी साहित्य कोश, भाग १, पृ० २७ ५. हिन्दी साहित्य कोश, भाग-१. १० ६२७, तथा तु० Shiplay, J.T., Dictionary of World Literature, London, 1945, pp. 213-14 ६. हिन्दी साहित्य कोश, भाग-१ पृ० ६२७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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