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________________ साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य રૈવ वर्णनात्मक रूप को प्राप्त कर महाकाव्य संज्ञा प्राप्त कर लेती हैं ।' यहाँ तक कि आयरलैण्ड जैसे देश में जहाँ अधिकांश साहित्य गद्यात्मक है किन्तु वहाँ भी उस देश की वीर गाथाएं पद्यात्मक रूप में मौखिक रूप से चलती थीं तथा बाद में उन्हें भी वर्णनात्मक महाकाव्य का स्वरूप प्राप्त हो गया । भारतीय महाकाव्यों के अङ्क ुर भी इन्द्र की शौर्यपूर्ण गाथाओं के रूप में ऋग्वेद में सुरक्षित हैं । तदनन्तर ऋग्वेद की दान स्तुतियों, अथर्ववेद के कुन्ताप मन्त्रों तथा शतपथ ब्राह्मरण के गाथानाराशंसियों के माध्यम से महाकाव्यों के मौलिक तत्त्वों का महाकाव्य के रूप में सतत विकास हुआ है । महाकाव्य विकास की दो धाराएं विकसनशील महाकाव्य तथा श्रलङ्कृत महाकाव्य पाश्चात्य विचारधारा के अनुसार मुख्यतः महाकाव्यविकास को दो धाराएं हैं ५ – १. 'विकसनशील महाकाव्य ' ' जिसे 'Epic of Growth, ‘Authentic Epic', 'Folk Epic'5, 'Herole Epic' ', आदि नामों से भी जाना जाता है । तथा २. ‘अलंकृत महाकाव्य' जिसके ' Epic of Art', १° 'Imitative Epic' ' ' ‘Literary Epic'१२ आदि पर्यायवाची नाम भी प्रसिद्ध हैं । (क) विकसनशील महाकाव्य वीर गाथाओं के धरातल से उठते हुए प्राम: कई शताब्दियों तक केवल मात्र मौखिक गाथाओं के रूप में विकसित होते रहते हैं । १. २. ३. Dixon, M., English Epic & Heroic Poetry, p. 27; Ghosh, J., Epic Sources of Sanskrit Literature, Calcutta 1963, p. XXV. Sidhant, The Heroic Age of India, p. 70 Upadhyaya, Ramji, Sanskrit and Prakrit Mahakavyas, Saugar, 1962, p. 15 ४. Kieth, A History of Sanskrit Literature, p. 41. Sidhant, The Heroic Age of India, p. 70-76 ५. ६. शम्भूनाथ सिंह, हिन्दी साहित्य कोश, भाग - १, ७. ८. प्रधान सम्पा०-डा० धीरेन्द्रवर्मा, पृ० ६२७ Sidhant, The Heroic Age of India, p. 70 Watt, H.A. and Watt, W. W., A Dictionary of English Literature, New York, 1952, p. 355 Sidhant, The Heroic Age of India, p. 70 ε. १०. वही, पृ०७० ११. वही, पृ० ७० १२. वही, पृ० ७०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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