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________________ ५४२ जैन संस्कृत महाकाब्यों में भारतीय समाज पर प्राचीन भारतीय जनजीवन के इतिहास लेखन की जिस नवीन प्रवृति का हाल के दशकों में जो सूत्रपात हुआ है उस दिशा में भी निःसन्देह जैन संस्कृत महाकाव्यों के साक्ष्य दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेजों के रूप में मध्यकालीन भारतीय समाज पर बहुमुखी प्रकाश डालते हैं। २. गुप्त साम्राज्य जैसे विशाल साम्राज्यों के पतन के बाद सातवीं-पाठवीं शताब्दी ई० में समस्त भारत छोटे-बड़े असंख्य राज्यों में विभक्त होने लगा था। 'मात्स्यन्याय' की प्रवृति से अनेक शक्तिशाली राजा छोटे और निर्बल राजाओं को आतंकित करने में लगे हुए थे। आन्तरिक तथा बाह्य दोनों दृष्टियों से राजनैतिक वातावरण अशान्त एवं अराजक बना हुआ था। राज्य के अन्त:पुर ही राजनैतिक षड्यन्त्रों के अड्डे बन गए थे । किसी भावी राजकुमार को राज्य का उत्तराधिकारी न बनाने की तनावपूर्ण स्थिति में राजपरिवारों की रानियां तथा मंत्री तक राजा के विरुद्ध षडयंत्र रचने में भी नहीं चूकते थे। सामान्यतया अर्थशास्त्र, महाभारत स्मृति ग्रन्थों के राजनैतिक विचारों को इस युग में पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हुई है तथा साथ ही युगीन परिस्थितियों में परम्परागत राजनैतिक विचारों की नवीन व्याख्याएं भी की जाने लगी थीं। सिद्धान्त रूप से राजा द्वारा मंत्रिपरिषद् में मंत्रणा करना आवश्यक माना जाता था तथा किसी भी राजनैतिक पहल पर पक्ष-विपक्ष के विभिन्न तर्कों पर गम्भीरता से विचार किया जाता था। साम्राज्यविस्तार में लगे हुए शक्तिशाली राजा राजधर्म के मूल्यों का उल्लंघन करते हुए निबंल राजामों की धन-सम्पत्ति को ऐंठने के लिए भी विशेष सक्रिय थे। ऐसे कुटिल राजारों के व्यवहार से भयभीत होकर अनेक शान्तिप्रिय एवं निबंल गजानों के पास केवल एक ही उपाय बचा हुअा था कि वे शक्तिशाली राजा को अपार धन सम्पत्ति उपहार के रूप में देकर उसकी प्रभुता को स्वीकार करें । आलोच्य युग की इन्हीं राजनैतिक परिस्थितियों में साम-दान-दण्ड-भेद की नीतियों का औचित्य सिद्ध किया जाता था। शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के उद्देश्य से केन्द्रीय एवं प्रान्तीय स्तर पर यद्यपि अनेक प्रशासनिक पदों का अस्तित्व था परन्तु प्रान्तीय प्रशासक के रूप में सामन्त राजा कभी भी अपनी शक्ति का विस्तार कर स्वतन्त्र राजा बन सकने की स्थिति में भी बने हुए थे। ग्रामप्रशासन में ग्राम के शक्तिशाली एवं मुखिया आदि प्रतिष्ठित लोगों को राज्य प्रशासन से सम्बद्ध कर दिया गया था जिसके परिणाम स्वरूप सामन्तवादी अर्थव्यवस्था की जड़ें मजबूत होती गई। ३. सैन्य व्यवस्था की दृष्टि से भारतीय सेना प्रत्येक दृष्टि से एक समद्ध एवं शक्तिशाली सेना जान पड़ती है । विविध प्रकार के आक्रमणात्मक तथा सुरक्षात्मक आयुधों के निर्माण की गतिविधियाँ उत्तरोत्तर प्रगति पर थीं। आग्नेयास्त्र, गोला, बारूद तथा भारी टैंक सदृश यंत्रों का भी युद्ध में उपयोग किया जाता था। इसके
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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