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________________ सिंहावलोकन १. मध्यकालीन इतिहास के सन्दर्भ में सातवीं शताब्दी एक संक्रमणशील एवं परिवर्तनमूलक शताब्दी होने के कारण अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । इसी शताब्दी के आस पास साम्राज्यवादी युग प्रवृतियाँ हतोत्साहित होते हुए सामन्तवादी युग दर्शन की ओर उन्मुख होने लगीं थीं । धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि सभी क्षेत्रों के संस्थागत मूल्यों में भारी परिवर्तन हुए तथा ध्रुवीकरण एवं नवीनीकरण की समाजप्रवृतियों का उदय हुआ । जैन संस्कृत महाकाव्यों के निर्माण की समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि भी इसी युग में तैयार हुई तथा तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी पर्यन्त असंख्य जैन संस्कृत महाकाव्यों के प्ररणयन को निरन्तर रूप से प्रोत्साहन मिला। इसी युग में जैन मनीषियों द्वारा जैन धर्म को एक उदार एवं लोकप्रिय धर्म के रूप के प्रतिष्ठित करने के जो अनेक उपाय किए गए उनमें पौराणिक वृत्त से अतिरंजित महाकाव्यों के माध्यम से जैन धर्म और संस्कृति का प्रचार करना भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य था । प्रारम्भ में जैन लेखक प्राकृत भाषा में ही साहित्य सृजन किया करते थे परन्तु सातवीं शताब्दी के उपरान्त जैन कवियों ने संस्कृत के माध्यम से साहित्य सृजन की गतिविधियों को विशेष प्रोत्साहित किया । अधिकांश जैन महाकाव्यों के लेखक कवि होने के साथ-साथ अपने युग के महान् दार्शनिक तथा प्रभावशाशी धर्माचार्य भी होते थे । परन्तु इन महाकाव्यों की रचना किसी राज्याश्रय से प्रेरित न होकर जनसामान्य की अनुप्रेरणा पर हुई है । प्रायः जैनाचार्य विभिन्न प्रान्तों, नगरों, गाँवों प्रादि में भ्रमण करते रहते थे । लोकचेतना से जुड़ी इन्हीं अनुभूतियों से प्रेरणा पाकर जैन संस्कृत महाकाव्यों साहित्यिक कलेवर का सृजन हुआ है। परम्परागत मूल्यों एवं समसामयिक युग परिस्थितियों के सामञ्जस्य से ग्रथित इन महाकाव्यों के इतिहास- सत्य मध्यकालीन मानव तथा उसके पर्यावरण का सफल श्रंकन करते हैं । किसी राजवंश की कीर्तिपताका को फहराने तथा किसी राजा विशेष की वीरता श्रादि का गुणानुवाद करने के प्रयोजन से रचित किन्तु इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली अभिलेखादि सामग्री की तुलना में धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के मूल्यों से अनुप्रेरित जैन संस्कृत महाकाव्यों की समाज सापेक्ष सामग्री सामाजिक इतिहास लेखन के लिए कहीं अधिक सार्थक एवं प्रामाणिक कही जा सकती है। साहित्यिक स्रोतों के याधार
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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