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froकर्ष
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
इस प्रकार जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्राचीन भारतीय भौगोलिक स्थिति का विशद वर्णन हुआ है। प्राचीन भारतीय जनजातियों तथा विदेशी जातियों के नाम से प्रसिद्ध कतिपय प्रदेशों तथा बौद्धकाल में प्रचलित महाजनपदों की संज्ञाएं जैन महाकाव्यों के समय तक भी प्रसिद्ध थीं । अनेक राजानों के दिग्विजय वर्णनों के अवसर पर वरित कुछ प्रदेश तत्कालीन राज्यों के प्रदेशों की संज्ञाओं की ओर संकेत करते हैं । परन्तु कुछ ऐसे प्रदेश भी थे जो यद्यपि प्राचीनकाल में प्रचलित देशों के नाम से प्रसिद्ध थे किन्तु श्रालोच्यकाल में इन प्रदेशों की भौगोलिक स्थिति
अनेक परिवर्तन तथा संशोधन भी हो चुके थे । सातवीं शताब्दी ई० में ह्न ेन्त्सांग के अनुसार भारतवर्ष में प्रदेशों की संख्या लगभग अस्सी बताई गई है । त्सांग के द्वारा विहित संख्या की तथा जैन संस्कृत महाकाव्यों में निर्दिष्ट विभिन्न देश-प्रदेशों की संख्या से तुलना की जाए तो अधिक अन्तर द्रष्टिगत नहीं होता । मध्यकालीन भारतवर्ष में 'कलिंग', 'बंग', 'अंग', 'कर्णाट' आदि का प्रयोग व्यापक रूप में हुप्रा है । प्रायः किसी देश के राजा को या उस देश की सेना आदि को भी तद्देशीय संज्ञा से सम्बोधित किया जाता था। जैन महाकाव्यों में वरिणत भौगोलिक सामग्री भारतवर्ष की समग्र राष्ट्रीय संचेतना का एक ऐतिहासिक मानचित्र प्रस्तुत कर देती है । उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम में विद्यमान महत्त्वपूर्ण पर्वतमालानों तथा नदी-स्रोतों से संवलित जैन महाकाव्यों का भारत सामासिक एवं राष्ट्रीय लोकचेतना से विशेष अनुप्राणित रहा था ।