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________________ भौगोलिक स्थिति ५२. पाण्ड्य'-- उत्तरी भारत की 'पाण्डु' जाति के राज्य की पाण्ड्य संज्ञा थी। प्राधुनिक मदुरा आदि के क्षेत्र इस प्रदेश में पाते हैं। विभिन्न समयों में उरगपुर (आधुनिक विचिनोपली), मथुरा (आधुनिक मदुरा), कोल्कई आदि इसकी राजधानियाँ रही हैं । २ ५३ कांची 3-डे महोदय ने 'कांचीपुर' को स्पष्ट करते हुए इसे पोलार नदी के दक्षिण-पश्चिमी मद्रास में इसकी स्थिति मानी है तथा कांजिवरम्' से अभिन्न माना है। ५४. मरु५-राजपूताना अथवा रेतीले प्रदेश मारवाड़ को प्रायः 'मरुस्थल' की संज्ञा दी जाती है। कीर्तिकौमुदी महाकाव्य में निर्दिष्ट 'मरु' देशवाचक शब्द है तथा 'मरुभूप' एवं 'मरुभूभुज' प्रादि प्रयोग इसी अभिप्राय की पुष्टि करते हैं । वसन्तविलास महाकाव्य से यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि 'मरुकच्छ' प्रयोग दो स्वतन्त्र प्रदेशों के लिए प्राया है अथवा भरुकच्छ का पाठान्तर है। ५५. गोब्रहः – यह देश भौगोलिक कोशों में अनुपलब्ध है। कीतिकौमुदी महाकाव्य में 'लाट' तथा 'मरु' देश के साथ इसका भी प्रयोग हुआ है।'' ५६. शाकम्मरी-पश्चिमी राजपुताने में अवस्थित सम्भार देश । 'सपादलक्ष' देश की राजधानी भी शाकम्भरी रही है। कभी-कभी इसे शाकम्भारी से अभिन्न माना जाता है । इसमें पूर्वी राजपुताने के प्रदेश भी सम्मिलित थे ।१२ १. जयन्त०, ११:४६; वसन्त०, ३.४४ २. Dey, Geog. Dic., p. 147 ३. जयन्त०, ११.५३; वसन्त०; ३.४३; हम्मीर०, १०.१६ ४. Dey, Geog. Dic., p. 88 ५. कीर्ति०, ४.५७; वसन्त०, १०.२५ ६. Dey, Geog. Dic., p. 127 ७. कीर्ति०, ४.५५, ५६ ८. लाटगोडमरुकच्छडाहलावन्तिवङ्गविषया: । -वसन्त०, १०.२५ ६. कीर्ति०, ४.५७ १०. अथ गोद्रहलादेशनाथो मरुनाथो निभृतं निबद्धसन्धी। .. -वही, ४.५७ ११. कीर्ति०, २.२६; हम्मीर०, १.८१ १२. Dey, Geog. Dic., pp. 174, 78
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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