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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
औचित्य समझा जाना चाहिए। जैन महाकान्यों में उपलब्ध भौगोलिक सामग्री का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
१. पर्वत
१. उज्जयन्त ( रैवतक) वसन्तविलास में अम्बिकासानु, प्रालोकसानु, साम्बुसानु तथा 'प्रद्युम्न' रैवतक पर्वत के विभिन्न शिखरों के उल्लेख भी आए हैं । जूनागढ़ शिलालेख के अनुसार उज्जयन्त पर्वत पलाशिनी तथा सुवर्णसिक्ता दो नदियों का स्रोत था। गिरनार पर्वत जोकि जूनागढ़ से एक मील दूर पूर्व की ओर स्थित है, उज्जयन्त पर्वत कहलाता था । ४
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२. अर्बुदाचल - ( माउन्ट आबु ) – अर्बुदाचल को माउण्ट आबु से अभिन्न माना जाता है। इसकी स्थिति अरावलि के दक्षिणान्त में थी ।
३. शत्रुंजय - ( विमलगिरि ) - काठियावाड़ में सूरत से ७० मील उत्तरपश्चिम तथा भावनगर से ३४ मील दूर पूर्ववर्ती पलिताना नगर के समीप अवस्थित है। 5
४. विन्ध्याचल - नर्मदा एवं ताप्ती नदियों के उद्गम स्थान विन्ध्याचल पर्वत की स्थिति पश्चिमी मध्य भारत में विद्यमान है । नागार्जुन पर्वत का कुछ
१. देशानाममधिपतिरस्ति पूर्वदेश | चन्द्र० १६. १ तथा धर्म १.४३; नाम्ना विनीत- विषयः ककुदं पृथिव्याम् ।
—वराङ्ग० १.२३ तथा वर्ध० ५.३२, देशानां जनपदानाम् । अधिपतिः प्रभुः । पूर्वदेश: पूर्व इति देश: अस्ति ।
--चन्द्र० १६. १ पर विद्वन्मनो टीका, पृ० ३८४ तथा द्रष्टव्य Altekar, State and Government, p. 208-9
२. वराङ्ग०; २५.५६, कीर्ति०, ६.३७, ३८, वसन्त०, ३.५६, १३.१, द्वया०
१५.६१
३. वसन्त०, १३.२१
४. Gupta, Geography in Ancient Inscriptions, pp. 251-52
५. कीर्ति ० २.५८, द्वया० ५.४२
६. Gupta, Geography in Ancient Indian Inscriptions, p. 251
७. कीर्ति०, ९.२१, वसन्त०, १०.५५
८. Dey, N.L., The Geographical Dictionary of Ancient & Medieval India, Delhi, 1971 p. 182
ε. द्वया०, १.६५