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भौगोलिक स्थिति
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का सम्पूर्ण भारत पर सीधा शासन नहीं था। उनके अधीन अनेक महाराजा, तथा गणराज्य थे जो राज्य के आन्तरिक शासन की दृष्टि से पूर्णतः स्वतंत्र अस्तित्व रखते थे । गुप्त राज्य की शासन व्यवस्था में छह प्रकार के राज्यों का अस्तित्व था (१) गुप्त सम्राटों के अधीन निजी राज्य जिनके उपविभाग 'भुक्ति' तथा 'विषय' थे। (२) आर्यावर्त व मध्यदेश के सामन्त राज्य (३) यौधेय, मालव, आभीर, प्रादि गणराज्य जो गुप्त राजाओं के आधिपत्य को स्वीकार कर चुके थे। (४) कुछ पृथक् राज्य (५) सीमावर्ती आसाम, नेपाल आदि राज्य तथा (६) सिंहल द्वीप तथा भारत के उत्तरी पश्चिमी सीमा के कुशाण आदि मित्र राज्य ।२
पालोच्य युग की भौगोलिक परिस्थितियाँ
गुप्त काल के बाद हर्षवर्धन के समय में ही भारत में छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों का अस्तित्व पा चुका था । यद्यपि कुछ बड़े राजाओं के आधीन इन स्वतंत्र राज्यों का शासन था किन्तु प्रान्तरिक शासन व्यवस्था की दृष्टि से इनकी स्वतंत्र सत्ता भी स्वीकार की जाने लगी थी।३ मध्यकालीन भारत के राज्यों के विभाजन की तुलना बौद्ध युग अथवा मौर्य साम्राज्य से की जाए तो मालूम पड़ता है कि मध्यकालीन शासन में राज्य की कल्पना एक छोटे से भूभाग तक सीमित रह चुकी थी। पूर्वनिर्दिष्ट बौद्धकालीन १६ महाजनपदों के नाम इस युग में लोकप्रिय थे किन्तु उनकी क्षेत्रसीमा संशोधित एवं संकुचित हो गई थी।४ इन्हीं राजनैतिक परिस्थितियों की प्रतिच्छाया में जैन संस्कृत महाकाव्यों की रचना हुई थी। यद्यपि अधिकांश जैन महाकाव्यों के राजाओं के कथानक पौराणिक एवं सांस्कृतिक कलेवर से युक्त हैं किन्तु इनसे सम्बद्ध देशविभाजन सम्बन्धी वर्णनों में तत्कालीन परिस्थितियों का स्पष्ट प्रभाव भी देखा जा सकता है। तत्कालीन राष्ट्रकूट, वाकाटक, पल्लव, गूर्जर आदि राजवंशों में प्रान्तीय विभाजन की मुख्य इकाइयाँ देश, विषय, राष्ट्र तथा जनपद आदि थीं। वास्तव में यह प्रान्तीय विभाजन ही मध्यकालीन सामन्त राज्यों की एक प्रमुख भौगोलिक चेतना रही थी। इन्हीं राजनैतिक एवं भौगोलिक सन्दर्भो में जैन महाकाव्यों के 'देश', 'राष्ट्र', 'विषय', का
१. सत्यकेतु विद्यालङ्कार, प्राचीन भारतीय शासन व्यवस्था और राजशास्त्र,
पृ० २५८, ५६ २. वही, पृ० २६१, ६२ ३. Altekar, A.S., State and Government in Ancient India, Delhi. ___1972, p. 208 ४. वही, पृ० २०८