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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था आचार संहिता से अनुप्रेरित थी । पुरुष का वर्चस्व नारी समाज पर पूरी तरह से हावी था। उच्चवर्ग की कन्यानों को नृत्यादि कलाओं की शिक्षा दी जाती थी तथा विवाह आदि अवसरों पर उन्हें मनोवांछित वर के चयन की स्वतन्त्रता भी प्राप्त थी। राजकुलों से सम्बद्ध अालोच्य युग की विवाह संस्था पूर्णतः युगीन राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित जान पड़ती है । राज दरबारों में तथा मंत्रिपरिषदों में गम्भीरता से विचार विमर्श करने के उपरान्त ही विवाह सम्बन्धों को स्वीकृति देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा था। इन सभी विवाह सम्बन्धों में वर एवं वधू की योग्यताओं के साथ साथ राजनैतिक परिस्थितियों से उत्पन्न परराष्ट्र नीति पर भी ध्यान दिया जाता था। स्वयंवर विवाहों का स्वरूप विकसित होता जा रहा था तथा प्रेम विवाह भी प्रोत्साहित किए जा रहे थे । अनेक प्रकार के अनुबन्धात्मक विवाहों की स्थिति का भी पता चलता है। जैन महाकाव्यों में उपलब्ध होने वाले विवाह वर्णन ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त उपादेय कहे जा सकते हैं। दक्षिण भारत, गजरात, राजस्थान, आदि विभिन्न देशों की प्रान्तीय रीति-रिवाजों की इन विवाह प्रसङ्गों में चर्चा आई है। अनेक प्रान्तों में विवाहावसरों पर विविध प्रकार के सांस्कृतिक मनोरञ्जनों तथा हर्षोल्लास सम्बन्धी गतिविधियों का विशेष प्रचलन रहा था । उच्च वर्ग के लोगों में विवाह के अवसर पर दहेज देने की प्रथा प्रचलित रही थी जबकि दूसरी ओर सामान्य व्यक्ति के लिए धनाभाव के कारण कन्या का विवाह करना चिन्ता का विषय भी बना हुप्रा था । स्त्रियां बहुविवाह से प्रभावित थी परिणामतः सपत्नियों की प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए उसे कृत्रिम सौन्दर्य विन्यास तथा कामशास्त्रीय विलास चेष्टानों में दक्ष होने की विशेष आवश्यकता थी। मध्यकालीन भारत में वेश्यावृत्ति को एक मुख्य सामाजिक अभिशाप के रूप में देखा जा सकता है। सामन्तवादी मूल्यों के कारण स्त्री का सौन्दर्यात्मक तथा वासनात्मक पक्ष विशेष रूप से उद्घाटित हो चुका था। फलतः वेश्यावृत्ति एक प्रमुख व्यवसाय का रूप धारण कर चुकी थी। मानवीय दुर्बलताओं के कारण चरित्र भ्रष्ट स्त्री के पास जीविकोपार्जन का व्यवसाय वेश्यावृत्ति ही था। एक स्त्री यदि वेश्यावृत्ति स्वीकार कर ले तो उसकी भावी पुत्रियां भी वेश्यावृत्ति का व्यवसाय करने के लिए बाध्य थीं। वेश्या का समाज में धृणास्पद स्थान होने के कारण वेश्यावृत्ति कुल परम्परा से भी चलने लगी थी। अन्य कुलीन स्त्रियों के समान वेश्याएं भी अनुरागात्मक दाम्पत्य जीवन बिताने की लालसाएं रखती थीं किन्तु समान उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। पुरुषायत्त समाज व्यवस्था के कारण व्यक्ति अपनी वासना पूर्ति तथा मनोरञ्जन के लिए वेश्याओं के पास जाना तो उचित समझते थे किन्तु कल स्त्री के पद पर प्रतिष्ठित करने का साहस उनमें नहीं था। सती प्रथा का कहीं कहीं प्रचलन था किन्तु एक कुप्रथा के रूप में इसका विरोध भी किया जा रहा था।
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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