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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
निष्कर्ष
इस प्रकार वैदिककाल से उत्तरीत्तर ह्रासोन्मुखी नारी की स्थिति आलोच्य काल में कुछ सुधरती दिखाई देती है। यद्यपि स्मृतिकालीन पुरुषायत्त प्राचारसंहिता से वह इस काल में भी जकड़ी हुई थी तथापि सामन्तवादी समाज व्यवस्था से अनुप्रेरित ऐश्वर्य भोग एवं सौन्दर्य विलास की मनोवृत्तियों के परिणाम स्वरूप नारी चेतना समाज की एक प्रमुख चेतना बनकर उभरने लगी थी। युद्ध चेतना से उद्दीप्त वीरभावना शृङ्गारभावना के बिना अधूरी सी दिखाई देती है। सामन्तवादी भोगविलास के मूल्यों से उत्प्रेरित होने वाले जीवन दर्शन की एक मुख्य आवश्यकता नारी बन चुकी थी। फलतः आलोच्य युग के काव्यों का मुख्य स्वर भी नारी सौन्दर्य के शृङ्गारिक एवं अश्लील वर्णनों से मुखरित हुआ है। यहाँ तक कि शौर्य और पराक्रम को उत्तेजित करने वाली संजीवनी शक्ति के रूप में नारी की भोग्या शक्तियों को उभारने की अधिकाधिक चेष्टाएं हुई हैं। भोग्या के इसी विराट् स्वरूप को धारण कर नारी समाज के व्यापक धरातल पर अपना प्रभुत्व जमाए दृष्टिगत होती है। वह युद्धों का एक प्रमुख कारण बनकर उभरी है तो युद्धशान्ति की साधिका भी वही है । परराष्ट्र नीति के निर्धारण का प्रश्न हो या फिर स्वराज्य सुदृढ़ता का, सामन्तशाही राजशक्तियाँ विवाह प्रयोगों द्वारा नारी का राजनैतिक प्रयोग कर अपनी नीति कुशलता का प्रदर्शन करने में लगी हुई थीं तो वहाँ दूसरी ओर नारी शक्ति भी राजशक्ति को अपने हाथ का खिलौना बनाने में किसी से कम पीछे नहीं थी।
धार्मिक जगत् में नारी सुख के प्रलोभनों से स्वर्ग सुख की अवधारणाओं को समझाया जा रहा था । दार्शनिक चर्चा के क्षेत्र में स्त्री-भोग-विलास सम्बन्धी उपमानों की सहायता से गूढ़ सिद्धान्तों तथा वादों को विशद करने की प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ हो चुकी थीं जो इस तथ्य की ओर संकेत है कि समग्र मध्यकालीन मानव चेतना नारी मूल्यों से किस तरह आकर्षित होती जा रही थी। सामन्तवादी अर्थव्यवस्था को विकसित एव पल्लवित करने की दृष्टि से भी नारी संस्था की विशेष भूमिका दिखाई देती है। प्रायः सामन्तवादी राजा विवाह के अवसर पर अनेक ग्राम तथा अन्य भूमि सम्पत्तियां दहेज के रूप में प्राप्त करते थे जिसके परिणामस्वरूप भूसम्पत्ति के हस्तान्तरण एवं विकेन्द्रीकरण की सामन्ती प्रवृत्तियाँ उत्तरोत्तर प्रोत्साहन प्राप्त कर रही थीं। हम यह भी देखते हैं कि स्त्री सौन्दर्य प्रसाधनों के कारण ही आर्थिक क्षेत्र में अनेक व्यवसाय अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुके थे जिनमें वृक्ष उद्योगों द्वारा सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुएं तैयार करना तथा नाना प्रकार के प्राभूषण आदि बनाने से सम्बद्ध व्यवसाय विशेष प्रगति पर थे।
कुल स्त्री के विविध रूपों में नारी की स्थिति स्मृतिकालीन पुरुषायत्त