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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था ५०७ वराङ्ग का एक साथ दस कन्याओं से विवाह हुआ था ।' तदनन्तर उसने ग्यारहवीं कन्या सुनन्दा से भी विवाह किया ।२ प्रद्युम्नचरित में श्री कृष्ण की सत्यभामा महिषी थी उसके बाद रुक्मणी के साथ भी उनका प्रेम विवाह हुअा था । शान्तिनाथ की ६६ हजार रानियां होने के उल्लेख मिलते हैं। पद्मानन्द० में ऋषभ नाथ का विवाह सुनन्दा एवं सुमङ्गला नामक दो कन्याओं से होता है । जयन्तविजय के उल्लेखानुसार कुमार जयन्त का कनकवती तथा दतिसुन्दरी दो राजकुमारियों से विवाह हुआ था । चन्द्रप्रभ महाकाव्य में राजा कनकप्रभ तथा पद्मनाभ की एक-एक पत्नी होने के भी उल्लेख मिलते हैं। इसी प्रकार धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य के अनुसार राजा धर्मसेन ने स्वयंवर विवाह द्वारा केवल मात्र कन्या शृङ्गारवती से ही विवाह किया था। सांस्कृतिक कथानकों से अनुप्रेरित होने के कारण भी जैन महाकाव्य बहु विवाह प्रथा का उल्लेख करते हैं। राजा-महाराजाओं का बहुविवाह होना तत्कालीन राजनैतिक सुदृढ़ता की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। अनेक शक्तिशाली राजारों से राजकुमारी अथवा राजकुमार का सम्बन्ध बनाकर सामन्त राजा या तो राजनैतिक जोड़-तोड़ में लगे हुए थे अथवा अपनी राजनैतिक शक्ति को संतुलित बनाने की ओर अग्रसर थे। इन राजनैतिक परिस्थितियों में भी बहुविवाह का समाजशास्त्र लोकप्रियता प्राप्त कर रहा था। सम्भवतः सामान्य जनसाधारण में बहु-विवाह की प्रथा न थी केवल मात्र राजा-महाराजाओं, सेठ-साहुकारों आदि के परिवारों में ही बहु विवाह प्रचलित ये। सम्भवतः बहु-विवाह से उत्पन्न आर्थिक एवं सामाजिक दायित्वों का भार सामान्य व्यक्ति नहीं उठा पाता था किन्तु धनी व्यक्ति इसके लिए पूर्णतः समर्थ थे। सामन्तवाद की विलासपूर्ण जीवन पद्धति के कारण भी राजाओं का वर्ग एवं धनी मानी लोग सुन्दर से सुन्दर तथा अधिकाधिक स्त्रियों के साथ विवाह करने की लालसानों से ग्रस्त थे। १. वराङ्ग०, २.६६ २. वही, १६.२० ३. प्रद्यु०, ३.२७ ४. शान्ति०, १४.२००-३३६ ५. पद्मा०, ६.६६ ६. जयन्त०, १२.६३-६४ तथा १७.८७ ७. चन्द्र०, १.५४, १.८५ ८. धर्म०, १७.८३-१०५ ६. वराङ्ग०, २.१४.३३ १०. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में; प० ५४७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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