SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज दहेज प्रथा का विरोध जैसाकि पहले कहा जा चुका है कि प्रायः कन्या विवाह के अवसर पर दान स्वरूप दहेज देने की प्रथा प्रचलित थी। वराङ्गवरित में प्रान्त एक मान्यता के अनुसार कन्या को भूमि, गृह, स्वर्ण, गाय, भैंस, घोड़ा आदि वस्तुओं को देना प्रशंसनीय भी माना जाता था।' वराङ्गचरितकार जटासिंह नन्दि ने दार्शनिक दृष्टि से दहेज प्रथा का विरोध भी किया है । इस सम्बन्ध में कहा गया है कि विवाह के समय कन्या को दिए गए दहेज में खङ्ग आदि शस्त्र तथा धन सम्पत्ति दूसरों के दुःख का कारण होती हैं । इसी प्रकार गाय, बैल आदि पशुओं को दहेज के रूप में देना भी राग-द्वेष का कारण बनता है। सिद्धान्ततः प्रजनन शक्ति तथा अनेक प्राणियों की संहारस्थली माने जाने के कारण कन्यादान तथा भूमिदान धार्मिक दृष्टि से पुण्य के कारण नहीं बन सकते । जैन दार्शनिकों की मान्यता थी कि जब स्वयं ही स्त्री मोहनीय कर्मों का कारण है तब उसके साथ दहेज में दी जाने वाली वस्तुएं इन मोहनीय कर्मों में और अधिक वृद्धि ही करती हैं। इस प्रकार समाज में यद्यपि व्यावहारिक रूप से दहेज प्रथा का प्रचलन था तथापि जैन मुनिवर्ग दार्शनिक दृष्टियों से दहेज प्रथा का विरोध भी कर रहा था। बहुविवाहप्रथा जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित राजा-महाराजाओं तथा धनिक वर्ग की विवाह चर्या में बहुविवाह का सामान्यतया प्रचलन रहा था । वराङ्गचरित में कुमार १. कन्या भूहेमगवादिकानि केचित्प्रशंसन्त्यनुदारवृत्ताः । -वराङ्ग०, ७.३४ २. दुःखाय शस्त्रानिविषं परेषां भयावहं हेममुदाहरन्ति । -वही, ७.३६ ३. संताडनोद्बन्धनदाहनैश्च दुःखान्यवाप्नोति गवादिदेयम् । -वही, ७.३६ ४. भूमिः पुनर्गर्भवती च नारी कृष्यादिभिर्याति वधं महान्तम् ।। -वही, ७.३७ ५. कन्याप्रदानादिह रागवृद्धिषश्च रागाद् भवति क्रमेण । ताभ्यां तु मोहः परिवृद्धिमेति मोहप्रवृत्ती नियतो विनाशः ।। -वही, ७३.५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy