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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था ५०५ को कन्या के पिता द्वारा वराङ्ग को दहेज रूप में दिया गया ।' राजनैतिक दृष्टि से कुछ राजा दहेज देने का प्रयोग साम नीति के उपाय के रूप में भी करते थे । वराज को प्रसन्न करने के लिए बकुलेश द्वारा अपनी कन्या मनोहरा के विवाहावसर पर एक हजार घोड़े, सौ हाथी, कोटिप्रमाण युक्त स्वर्ण तथा सौवरलम्बिकाएं भी दहेज स्वरूप प्रदान की गईं । राजाओं के विवाहावसर पर रथ, हाथी, घोड़े प्रादि दहेज के रूप में देना सामान्यतया प्रचलित था । चन्द्रप्रभचरित, ५ जयन्त विजय, शान्तिनाथचरित, ७ द्वयाश्रयकाव्य श्रादि महाकाव्यों से भी दहेजप्रथा के अस्तित्व की विशेष पुष्टि होती है । द्वयाश्रय में एक स्थान पर कन्या के पिता को दहेज न दे सकने के कारण चिन्तित वरिंगत किया गया है । विवाह सम्बन्धी कर्मकाण्ड भी दहेज चेतना से अनुप्राणित थे । वर को पात्र वस्त्र दान आदि की प्रथाएं तथा वर द्वारा कन्या के पिता से मनोवाञ्छित वस्तु के प्राप्त होने पर ही कन्या का हाथ छोड़ने जैसी प्रथाएं दहेज प्रथा का ही प्रच्छन्न रूप से पोषरण कर रहीं थीं । १० १. मत्तद्विपानां तु सहस्रसंख्या द्विषट्सहस्राणि तुरङ्गमानाम् । ग्रामाः शतेन प्रहताः सहस्रा हिरण्यकोटयश्च चतुर्दशैव ॥ द्वात्रिंशायोजितनाटकानि वृद्धाः किराता विविधाश्च दास्यः ! सुशिल्पिनः कर्मकरा विनीता दत्तानि पित्रा विधिवदुहित्रे ।। - वराङ्ग०, १६.२१-२२ २ . वही, २१.६७ ३. वही, २१.७४ ४. Narang, Dvyāśrayakāvya, p. 189 ५. श्रुत्वा सकलत्रमुद्धृतरिपुं भूत्या महत्यागतम् । - चन्द्र०, ६.१११ ६. जयन्त०, १३.६४ ७ शान्ति०, ४.११६-२० ८. द्वया०, ७.७५, १०६, ११२, ६.१७१, १६.२४ ६. वही. १८.६२ तथा Narang Dvyāśrayakāvya, p. 189 १०. सन०, १६,१६-१६, शान्ति०, ४.१६६ - २० तथा तु० - It was customary among all classes of people to give dowry to the daughter at the time of her marriage. It was known as 'Aranamu'. It should not be taken to mean that 'Araṇamu' was the price paid for the bride or the bridegroom. It was merely the gift given by the father at the time of the marriage of his daughter. -Krishanamoorthy, Soc. & Eco. Conditions in E. Deccan, P. 72
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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