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________________ ५०४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज करता था तथा सन्धि विग्रह आदि गुणों के प्रयोग से राज्य को सुदृढ़ कर चुका था।' अङ्गराज भी शत्रुमर्दन में विशेष दक्ष था तथा रूप सौन्दर्य में चन्द्रमा एवं कामदेव तुल्य था ।' कलिङ्गराज के पास उत्तम हाथी थे तथा वह स्वयं सदाचारी था। दक्षिण देश का पाण्ड्य राजा सुडौल शरीराकृति वाला था तथा युद्ध में अपना पराक्रम दिखाकर दक्षिण देश पर एकछत्र राज्य कर रहा था। इन राजाओं के रूप सौन्दर्य तया पराक्रम से राजकुमारी शृङ्गारवती तनिक भी प्रभावित नहीं हुई । बाद में प्रतिहारी ने धर्मनाथ ने गुणों का वर्णन किया। कुलीन होना, दैवी गुणों से युक्त होना रूप-सौन्दर्य युक्त होना, गुणशाली एवं पराक्रमी होना आदि धर्मनाथ की उल्लेखनीय योग्यताएं थीं ।५ इन योग्यताओं के अतिरिक्त धर्मनाथ के प्रति राजकुमारी के प्राकर्षण का मुख्य कारण यह रहा था कि वह धर्मनाथ के दर्शन मात्र से प्रेम-भाव के कारण रोमाञ्चित हो उठी थी। इसीलिए अन्य राजारों की तुलना में धर्मनाथ को श्रेष्ठ मानकर राजकुमारी ने उसके गले में वरमाला डाल दी । स्वयंवर विवाह के अवसर पर धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य में जिन कर्मकाण्ड परक विवाह विधियों का उल्लेख पाया है उनमें वर एवं वधू को नगर में घुमाना, माङ्गलिक गीतों से वर का स्वागत करना आदि सामान्य विवाह विधियों के समान ही थीं। ३. विवाहसंस्था सम्बन्धी अन्य प्रथाएं दहेज प्रथा जैन संस्कृत महाकाव्यों के विवाहावसर पर दहेज देने व लेने के अनेक उल्लेख पाए हैं । वराङ्गचरित के अनुसार सुनन्दा के विवाहावसर पर प्राधे राज्य के अतिरक्त एक हजार हाथी, बारह हजार घोड़े, एक लाख ग्राम, चौदह कोटि प्रमाण की स्वर्ण मुद्राएं, बत्तीस नाटक-विशेषज्ञ, अन्तःपुर में सेवा करने वाले वृद्ध पुरुष, किरात, दासियाँ आदि परिचारक, कुशल शिल्पी तथा अन्य राज कर्मचारियों १. धर्म०, १७.३६-४१ २. वही, १७.४५.४८ ३. वही, १७.५३-५६ ४. वही, १७.५८-५६ ५. वही, १७.७०-७५ ६. वही, १७.७८ ७. वही, २७.८० ५. वही, १७८३-१०५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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