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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था ४६३ विवाह हुना।' ऐसे सशर्त प्रेम विवाहों में भी वर की कुलीनता आदि गुणों को विशेष महत्त्व दिया जाता था।२ गान्धर्व विवाह का भी अनेक महाकाव्यों में उल्लेख पाया है। इस प्रकार के विवाह सम्बन्धों में कन्या की निकटस्थ सखी आदि की विशेष भूमिका रहती थी। ६. प्रतिज्ञा विवाह ___ कुछ इस प्रकार के विवाह भी होते थे जिनमें राजा पहले प्रतिज्ञा कर लेता था तदनन्तर प्रतिज्ञा पूर्ण हो जाने पर कन्या का विवाह सम्पन्न होता था। उदाहरणार्थ वराङ्गचरित में वरिणत राजा देवसेन ने सभासदों के मध्य यह प्रतिज्ञा की थी कि यदि 'कश्चिद्भट' नामक वराङ्ग, मथुराधिप इन्द्रसेन को युद्ध में पराजित कर देगा तो उसके साथ राजकुमारी सुनन्दा का विवाह कर दिया जाएगा तथा साथ में प्राधा राज्य दहेज के रूप में भी दिया जाएगा। राजकुमार वराङ्ग द्वारा मथुराधिप को परास्त कर देने की प्रतिज्ञा पूर्ण करने पर राजा देवसेन तथा उसके मन्त्रिमण्डल के विशेषाग्रह पर सुनन्दा का उससे विवाह कर दिया गया । ७. अपहरण विवाह अपहरण विवाह यद्यपि समाज में प्रशंसित विवाह न थे तथापि इस प्रकार के विवाह बहुत प्रचलित थे। प्रद्युम्नचरित में अपहरण द्वारा विवाह करने के दो उल्लेख प्राप्त होते हैं। प्रथम उल्लेखानुसार रुक्मिणी पर प्रासक्त कृष्ण ने कामदेव अर्चन के लिए गई हुई रुक्मिणी का पहले अपहरण किया तथा बाद में १. देवदत्तानुज्ञया तेऽप्यामिति प्रतिपेदिरे । देवदत्तोऽपि तां कन्यां परिणिन्ये शुभेऽहनि ।। -परि०, ६.६१ २. स उवाच कुलीनोऽयं कलाज्ञोयं सुधीरयम् । युवायं किं बहूक्तेन सर्वे वरगुणा इह ॥ -वही ६.५६ ३. वराङ्ग०, १३.३१.३५, जयन्त०, १२.३४ ४. त्वयेन्द्रसेनः समरे जितश्चेत्तुभ्यं प्रदास्ये सुतयाघराज्यम् । इत्येवमाघोष्य सभासमक्षं भूयो विचारस्तव नानुरूपः ।। -वराङ्ग०, १६.८ ५. कृत्वाग्निधर्मोदकसाक्षिभूतं कश्चिद्भटाय प्रददी सुनन्दाम् । --वही, १६.२०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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