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________________ ४६२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज अधिकांश प्रेम-विवाह भी राजनैतिक प्रयोजनों से ओतप्रोत होते थे। इस प्रकार के विवाहों में कुलीनता प्रादि की चिन्ता किए बिना वर एवं वधू के मध्य प्रेम भाव होना तथा राजनैतिक दृष्टि से इस सम्बन्ध का उपयोगी होना ही पर्याप्त था।' दूसरी पोर सुन्दर राजकुमारी पर कुछ अन्य राजा भी आँख गड़ाए बैठे रहते थे तथा अवसर आने पर अपहरण करने के लिए भी तत्पर थे। ५. अनुबन्धनात्मक प्रेम विवाह हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्व में एक रोचक अनुबन्धनात्मक प्रेम विवाह की चर्चा पाई है। उत्तरस्थ मथुरा का वणिक्पुत्र देवदत्त भ्रमण करते हुए दक्षिणस्थ मथुरा के वरिणक्पुत्र जयसिंह के घर पहुंचा ।२ दोनों अभिन्न मित्र थे। एक दिन जयसिंह ने देवदत्त को अपने घर भोजन के लिए आमन्त्रित किया वहां उसका परिचय जयसिंह की बहिन अन्निका से हुआ। देवदत्त अन्निका के रूप सौन्दर्य से प्राकृष्ट हो गया। उसके साथ विवाह करने के निश्चय से देवदत्त ने अपने किसी व्यक्ति को बातचीत करने के लिए जयसिंह के घर भेजा। जयसिंह अपनी बहिन अन्निका से बहुत स्नेह रखता था तथा यह नहीं चाहता था कि विवाहो. परान्त बह उससे बहुत दूर चली जाए।६ इस कारण जयसिंह ने देवदत्त के साथ अनुबन्ध पर अन्निका का विवाह करने का निश्चय किया। इस अनुबन्धनात्मक विवाह में सन्तानोपत्ति तक अन्निका का देवदत्त के घर में रहमा आवश्यक शर्त थी। देवदत्त को यह अनुबन्ध स्वीकार था और दोनों का विधि-विधान पूर्वक १. कुलजोऽकुलजोऽथवास्तु सोऽस्मै न हि दत्ता तनया भवत्यदत्ता। -चन्द्र०, ६.६६ २. प्रभूदुदङ्मथुरायां देवदत्तो वणिक्सुतः । दक्षिणस्यां मथुरायां दिग्यात्रार्थमियाय सः । -परि०, १.४३ ३. जयसिंहोऽन्यया जामिमन्निकामादिदन्निजाम् । समित्रोऽप्यद्य भोक्ष्येऽहं दिव्यां रसवतीं कुरु । -वही, ६.४६ ४. पश्यन्निन्दुमुखी देवदत्त: कामवशोऽभवत् । -वही, ६.५० ५. देवदत्तो द्वितीयेऽह्नि जयसिंहस्य सन्निधौ । प्रेषयामास वरकानान्निकायाचनाकृते ।। -वही, ६.५४ ६. प्राणप्रियेयं भगिनी मम लक्ष्मीरिवौकसि । तदिमां न प्रहेष्यामि विवोढुरपि वेश्मनि । -वही, ६.५६ ७. अपत्यजन्मावधि भो यद्येवं कर्त्तमीश्वरः । तदुद्वहतु मे जामि देवदतो अन्निकामिमाम् ॥ . -वही, ६.६०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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