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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
पूर्वाग्रह से प्रेरित स्वयंवर विधि में तथा कन्या द्वारा स्वेच्छा से वर के वरण करने की स्वयंवर विधि में प्रमुख अन्तर यह था कि प्रथम प्रकार के पूर्वाग्रह पूर्ण विवाह में किसी योग्यता विशेष की दक्षता को मापदण्ड मानकर सभी देशों से आए वरों में से श्रेष्ठतम तथा अद्वितीय योग्यता वाले व्यक्ति के साथ कन्या का विवाह करना माता-पिता एवं कन्या को अभीष्ट था। जबकि स्वयंवर विवाह में रूप-सौन्दर्य तथा पराक्रम इन तीनों गुणों में श्रेष्ठ व्यक्ति के चयन पर बल दिया जाता था। इस प्रकार के स्वयंवर विवाह में कन्या स्वयं अपने पति का वरण करने हेतु स्वतन्त्र थी।
४. प्रेम विवाह
चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य में राजकुमारी शशिप्रभा तथा राजकुमार अजितसेन के मध्य पारस्परिक प्रेम सम्बन्धों को जान कर कन्या के पिता राजा जयवर्मा ने शशिप्रभा के प्रेमी राजकुमार के साथ सगाई (वाग्दान) कर दी।' राजा जयवर्मा द्वारा राजकुमार के पराक्रम से आकर्षित हुई शशिप्रभा का वाग्दान, साम-दान आदि उपायों से अनुप्रेरित एक सुन्दर राजनैतिक प्रयोग भी था। राजकुमार अजितसेन ने चूंकि जयवर्मा के शत्रु का नाश किया था अतः अनुग्रह के रूप में शशिप्रभा का वाग्दान राजनैतिक दृष्टि से भी युक्तिसङ्गत ठहरता था। जयवर्मा द्वारा किए गए शशिप्रभा के वाग्दान से क्रोधित धरणीध्वज नामक एक दूसरे राजा ने इसकी प्रतिक्रिया के रूप में अपना दूत जयवर्मा के पास भेजा तथा शशिप्रभा की अजितसेन से सगाई तोड़ देने की पेशकस की अन्यथा शशिप्रभा का बलपूर्वक अपहरण करने की धमकी भी दी गई। परिणामतः धरणीध्वज एवं भावी दामाद में भयङ्कर युद्ध हुआ जिसमें अजितसेन की ही विजय हुई। वराङ्गचरित में भी कश्चिद्भट तथा मनोरमा का विवाह प्रेम-विवाह ही था। मनोरमा के पिता ने स्वयं कश्चिद्भट से विवाह करने का प्रस्ताव रखा था।
१. नरनाथ युवा सदा स दृष्टौ भवतो देहजया महेन्द्रमर्दी।
विदधाति ततः प्रभृत्यनास्थां स्वशरीरेऽपि विमुक्तगन्धमाल्या । विदधे च शुभे शरीरजाया दिवसे तत्प्रतिपादिते 'प्रदानम् ।
-चन्द्र०, ६.६०, ७१ २. वही, ६.६० ३. वही, ६.६४ ४. वही, ६.१००-१०६ ५. वराङ्ग०, १६.७२, २०.४१