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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१. विवाहभेद
जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित विवाह वर्णनों में उपर्युक्त प्रष्टविध विवाहों का विशेष आग्रह न होकर तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों का विशेष प्रभाव था । अधिकांश महाकाव्यों के विवाह वर्णन राजकुलों से सम्बन्धित हैं अतएव इन विवाहों का राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित होना स्वाभाविक है । तत्कालीन सामन्त पद्धति, राजनैतिक विचारतन्त्र तथा राजानों की प्रभुत्व शक्ति को प्रभावित करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम 'विवाह' भी रहा था । परराष्ट्रनीति को सुदृढ़ करने अथवा अन्य अप्रसन्न राजानों को सन्तुष्ट करने के लिए प्रायः राजा वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते थे। इसी प्रकार राजकुमार द्वारा राजकुमारी पर मुग्ध होने अथवा बलपूर्वक अपहरण कर विवाह करने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। स्वयंवर तथा प्रतिज्ञा विवाह भी समाज में लोकप्रिय रहे थे। विवाह सम्बन्धी इन्हीं राजनैतिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में जैन संस्कृत महाकाव्यों में वर्णित विविध प्रकार के विवाहों का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है ——-
१. मन्त्ररणा पूर्वक विवाह
वराङ्गचरित में वरिणत वराङ्ग का विवाह करने के
राजा अपने मन्त्रिमण्डल में अपने मन्त्रियों के साथ विवाह के सम्बन्ध में मन्त्ररणा भी करते थे । ' इस अवसर पर राजकुमार अथवा राजकुमारी की उचित योग्यताओं पर विशेष विचार विमर्श किया जाता था इस विवाह प्रकार का रोचक वर्णन आया है। कुमार लिए विभिन्न मन्त्रियों ने अपनी-अपनी सम्मतियाँ दीं। इन मन्त्रियों द्वारा दिए गए तर्काका तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों की दृष्टि से विशेष महत्त्व रहा था । प्रथम मन्त्री अनन्त सेन का विचार था कि समृद्धिपुरी के राजा घृतिसेन की पुत्री सुनन्दा शिक्षा, कुलीनता श्रादि गुणों के कारण राजकुमार वराङ्ग के अनुरूप एवं योग्य थी । इसके अतिरिक्त सुनन्दा मामा की लड़की होने के कारण भी दोनों राज्यों की प्राचीन मैत्री को श्रौर भी सुदृढ़ कर सकती थी। दूसरे मन्त्री प्रजितसेन
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१. ते मन्त्रिमुख्या विदितार्थतत्त्वा अनन्तचित्राजितदेवसाह्वाः । श्राहूतमात्रा वसुधेश्वरेण यथाविधस्थानमुपोपविष्टाः ॥
२ . वही, २.१०-४०
३. वैवाहिकी नः कुलसंततिः सा स्थिरा च मंत्री ननु तस्मादहं योग्यतया तयाशु सुनन्दयेच्छामि
—वराङ्ग०, २.१४
मातुलत्वात् । विवाहकर्म ॥
— वही, २.२०