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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
૪૭ की सम्मति के अनुसार राजा को पुराने सम्बन्धियों से सम्बन्ध बनाने की अपेक्षा नए राजाओं से विवाह सम्बन्धों द्वारा मैत्री स्थापित करना अधिक श्रेयस्कर था। पुराना सम्बन्धी तो पहले से मित्र बना ही होता है किन्तु अन्य वैवाहिक सम्बन्ध से नए राजा को भी मित्र बनाने का अवसर नहीं खोना चाहिए ।' तीसरा मन्त्री चित्रसेन किमी अन्य राजकुमारी के साथ वराङ्ग का विवाह करने के पक्ष में था। उसके विचारानुसार सुनन्दा का मामा देवसेन सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था तथा उसके अनुयायी सामन्त राजा भी अन्य राजाओं की अपेक्षा संख्या में अधिक थे । मन्त्री चित्रसेन के अनुसार यदि सुनन्दा के साथ वराङ्ग का विवाह न किया गया तो देवसेन रुष्ट हो सकता था। इस स्थिति में देवसेन अपनी पुत्री का विवाह किसी अन्य शक्तिशाली राजा से कर दे तो एक प्रबल मित्र से सम्बन्ध विच्छेद हो जाने की सम्भावना उत्पन्न हो सकती थी। चौथे मन्त्री द्वारा तीसरे मन्त्री की सम्मतियों को अनीतिसम्मत एवं अव्यावहारिक ठहराया गया। उसके अनुसार सम्बन्धियों के आश्रय में रहने से राजनैतिक स्थिरता की प्राप्ति सम्भव नहीं । राजा को चाहिए कि वह अधिक से अधिक मित्र राजा बनाए जिससे पहले से बने मित्र राजारों से किसी प्रकार का भय ही न रहे ।' अतएव चौथे मन्त्री ने राजा को महेन्द्रदत्त प्रादि पाठ राजाओं की पुत्रियों से राजकुमार का विवाह करने की सम्मति दी। परिणामतः पाठ राजारों के साथ मित्रता करने की तुलना में देवसेन के साथ मैत्री अथवा शत्रुता होना राजनैतिक स्थिरता की दृष्टि से महत्त्वहीन था । मन्त्रियों की मन्त्रणामों पर विचार करने के बाद राजा ने सभी
१. वराङ्ग०, २.२१-२२ २. को देवसेनादितर: पृथिव्यां नरेश्वरः पक्षबद्धिमानस्यात् ।
-वही, २.२३ ३ न सा सुनन्दा परिणीयते चेत्स्यान्मित्रभेदः स हि दोषमूलः ।।
-वही, २.२५ ४. यस्यापचारेण च यान्ति मित्राण्यमित्रतां वं न तु कार्यवित्सः ।।
-वही, २.२५ ५. दोषा यतस्तेन खलूपदिष्टास्ते दूरनष्टा नयमार्गवृत्त्या ।।
-वही, २.२७ ६. वही, २.२८-३० ७. वही, २.३१-३२ ८. मित्रं सहश्चापि हि देवसेनात्कि वाधिकास्ते न भवेयुरीशाः ।
-वही, २.३३