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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था सन्तानोत्पत्ति होने की मान्यताएं भी प्रचलित थीं । ' गर्भवती स्त्री तथा दोहद गर्भस्थ गर्भवती स्त्री के शरीर का सफेद हो जाना, स्थूल होना, आदि मुख्य लक्षण माने जाते थे । होने की मान्यता का विशेष प्रचलन था । का सम्बन्ध जोड़ने की भी विशेष प्रथा रही थी तथा उसे पूरा करने पर विशेष बल दिया गया है । " दोहद के अपूर्ण रहने पर गर्भनाश होने की शंका विद्यमान रहती थी । हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्व में चन्द्रगुप्त की माता को चन्द्रपान का दुःसाध्य दोहद उत्पन्न हुआ। चाणक्य ने इस दोहद की तृप्ति के लिए जलपात्र में चन्द्रबिम्ब के दर्शन कराकर चन्द्रगुप्त की माता के दोहद को पूर्ण किया । ७ तीर्थंकरों आदि की माताओं को उत्पन्न होने वाले दोहदों में जिनबिम्ब की पूजा करने आदि की इच्छा जागृत होने का उल्लेख प्राया है। इसी प्रकार धर्मशर्माभ्युदय में रानी सुत्रता को बन्द पक्षियों को मुक्त करने का दोहद उत्पन्न हुआ था। वेश्या १ फलं तथाप्यत्र यथर्तुगामिनः । सुताह्वयं नोपलभामहे वयम् ॥ २. धर्म ०, ६३ - १, तथा चन्द्र०, ३.६५ ३. जिनपूजा दौहृदानि । ४. दोहदाः खलु नारीणां गर्भभावानुसारतः ॥ ५. वित्तेन भूयसा श्रेष्ठी तद्दोहदमपूरयत् । ६. अपूर्णे दोहदे गर्भनाशोऽस्या मा भवत्विति । स्तन मुखों का काला एवं गर्भवती स्त्री को 'दोहद' शिशु की भावनाओं से दोहद समाज में वेश्यावृत्ति का विशेष प्रचलन था । शील आदि बेचकर धनार्जित करना वेश्याओं की मुख्य जीविका रही थी । १० वेश्याओं को प्रायः परांगना, ११ ४८ १ - धर्म०, २.६८ —चन्द्र०, ३.६८ तथा हम्मीर०, ४.१४२ — परि०, २.६३ — परि०, २.६२ - वही, ८.२३४ ७. वही, ८.२३५-३७ ८. चन्द्र०, ३ ६८ तथा तृ० - तस्याश्चाभूद्देवपूजा गुरुपूजासु दोहदः । - परि०, २.६१ ६. धर्म ०, ६.४ १०. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादि पुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० १८४ ११. परि०, १.१८६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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