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________________ ४८२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज गणिका.' आदि शब्दों से भी व्यवहृत किया जाता था। सैनिक शिविरों में भी वेश्यावृत्ति का विशेष प्रचलन रहा था।२ जैन महाकाव्यों में वर्णित नगरों में वेश्यालय होने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं ।३ राज्य-परिवारों के महत्वपूर्ण व्यक्ति भी वेश्याओं के साथ सम्पर्क रखते थे।४ सामान्यतया जन साधारण के लिए भी वेश्यानों के पास जाना अनुचित नहीं माना जाता था। वेश्याएं कृत्रिम शृङ्गार तथा विशेष कामोत्तेजक हावभावों से युवकों को आकर्षित करने में विशेष दक्ष होती थीं। प्रायः वेश्यालयों के भवन संगीत-गायन प्रादि से गुंजायमान रहते थे। वेश्यालयों के भीतरी कक्ष प्रायः चमकीले शीशों से निर्मित होते थे। इनमें स्थित चित्रशालिकानों में कामशास्त्र सम्बन्धी चित्र भी अंकित रहते थे। सामान्यतया वेश्याएं अनुरागहीन किन्तु रूप-लावण्य की दृष्टि से आकर्षक समझी जाती थीं। वेश्या का यौवन ही जीविकोपार्जन का मुख्य प्राकर्षण था फलतः सन्तानोत्पत्ति होने पर उसके यौवन का ह्रास होना वेश्या समाज में चिन्ता का विषय था। वेश्या यदि कभी गर्भवती हो भी जाती थी तो उसके लिए गर्भपात कराना ही उचित माना जाता था।'' हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्व में पाए एक दृष्टान्त के अनुसार कुबेरसेना नामक वेश्या के गर्भ ठहरने पर उसकी माता उसे १. परि०, २.२२४ १६० २. द्रष्टव्य, प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० १६० ३. वही, पृ० २४७ ४. परि०, ८.८ ५. वेश्याङ्गनाः सुललिताः समदा: युवानः । -वराङ्ग०, १.४३ तथा धर्म०, १.७५ ६. वही ७. धर्म०, १.७६ ८. द्विस०, १.३० ९. कोशाभिधाया वेश्याया गृहे या चित्रशालिका । विचित्रकामशास्त्रोक्तकरणालेख्यशालिनी ॥ -परि०, ८.११५ १०. स्नेहेन हीनाः स्मरदीपिकास्ताः । -धर्म०, ४.२४ ११. युग्मं स्तनन्धयामिदं भावियोवनहत्तव । वेश्याश्च यौवनजीवा जीवद्रक्षयौवनम् ॥ -- परि०, २.२३२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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