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________________ ४८० जंन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज स्वछन्द काम-क्रोडापों के लिए मद्यपान को एक कामोत्तेजक वस्तु के रूप में विशेष लोकप्रियता प्राप्त थी। जैन महाकाव्यों ने एतत्सम्बन्धी वर्णनों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया है । वस्तुतः तत्कालीन काव्यप्रवृत्ति का इस प्रोर विशेष झुकाव हो चुका था। दाम्पत्य जीवन तथा यौन सम्बन्ध दाम्पत्य जीवन से सम्बद्ध यौन सम्बन्धों के विषय में भी कतिपय जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। पालोच्य काल में रति क्रीड़ा सम्बन्धी अनेकविध कामशास्त्रीय मान्यताएं समाज में विशेष रूप से प्रचलित थीं।' काम कला से सम्बन्धित अनेक गतिविधियों का जैन महाकाव्यों में विस्तार से वर्णन हुआ है। इन वर्णनों से ज्ञात होता है कि विविध प्रकार की कामोद्दीपक सम्भोग कलात्रों में स्त्रियां दक्ष होती थीं। एक स्थान पर विपरीत रति करने का उल्लेख भी पाया है। रजस्वला स्त्री के साथ सम्भोग करना यद्यपि निषिद्ध माना जाता था किन्तु कुछ कामी लोग इस निषेध का भी पालन नहीं करते थे।५ सामान्यतया स्त्री की सार्थकता गर्भ धारण करने में ही मानी जाती थी। फलत: समाज में वनच्या स्त्री को घृणा की दृष्टि से भी देखा जाता था। ऋतुकाल में सहवास करने से १. धर्म, १५.५०,५५ २. विशेष द्रष्टव्य, चन्द्र०, सर्ग० १०; धर्म०, सर्ग १५; नेमि०, सर्ग० १०, वसन्त०, सर्ग ८ तथा हम्मीर०, सर्ग ७ । ३ तासां वधूनां रमणप्रियाणां क्रीडानुषङ्गक्रमकोविदानाम् । -वराङ्ग०, २.६१ जघनसङ्गमनोत्सुकमानसं हृदयनाथमवेत्य मृगीदृशः ।। स्वयमपसारदेव तदंशुकं किमुचिताचरणे गुणिनो बुधाः । __ --वही, ७.८० किमिदमित्यपरा शयनोन्मुखं स्तनघटेन जघान हि तं मुहुः ।। -वही, ७.८० ४. स्वाभाविकात् सुरततो विपरीतमेतद्रागं विशिष्य सुरतं वितनोति यूनां । - वही, ७.१२१ ५. रजस्वला अप्य भजस्रवन्तीरहो मदान्धस्य कुतो विवेकः । -धर्म०, ७.५३ ६. या स्त्यानर्मिणि पुरंध्रिजने प्रसिद्ध । स्त्रीशब्दमुद्वहति कारणनिर्व्यपेक्षम् ।। -चन्द्र०, ३३१ ७. वही, ३.३१
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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