________________
जन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
इसके विपरीत प्राचरण करने वाली स्त्रियों की निन्दा की जाती थी । युगीन कथा आदि में राज-पत्नियों द्वारा चोरी छिपे अपने प्रेमियों को श्राश्रय देने की मान्यताएं भी समाज में प्रचलित थीं ।' परिशिष्ट पर्व के अनुसार रानियों की नौकरानियाँ इस प्रकार के कार्यों में विशेष सहायक रहती थीं । संक्षेप में, दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने में नारी की पत्नी के रूप में विशेष भूमिका थी । पत्नि यदि चरित्रहीन हो तो दाम्पत्य जीवन के मध्य कटुता आने की सम्भावनाएं प्रा जाती थीं ।
४७८
स्त्री भोगविलास तथा मदिरापान
युगीन सामन्तवादी भोगविलास के मूल्यों ने दम्पत्तियों को कामविलासात्मक चेष्टानों को भी विशेष प्रभावित कर लिया था । वराङ्गचरित में उल्लेख प्राया है कि दम्पत्ति मदिरा पान कर कामक्रीडाओं में प्रवृत होते थे । धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य के अनुसार भी दम्पत्तियों द्वारा पान - गोष्ठी में सम्मिलित होने का उल्लेख आया है । नेमिनिर्वाण' तथा वसन्तविलास आदि महाकाव्य भी इसकी पुष्टि करते हैं । नेमिनिर्वाण महाकाव्य के उल्लेखानुसार काम ज्वर बढ़ाने तथा रमणियों में कामासक्ति को उत्तेजित करने के लिए कामीजन मदिरा का सेवन
१. तदान्यपुंसां सम्भोगविषयो राजपत्न्यपि ।
- परि०, २.२४२ तथा ३.२४७-४८
२. परि०, ३.२४३
३. मदिरामललोललोचनानां वनितानां सुरतोत्सव प्रियाणाम् ।
—वराङ्ग०, २४ ६
४. सा दम्पत्योरजनि मदनोज्जीविनी कापि गोष्ठी
स्वस्थाः केऽपि मधुव्रता इव मधून्यापातुमारेभिरे ।। — धर्म०, १४.८३-८४
५. श्रभ्युद्गते शशिनि मन्मथ मूलमात्रे
पीत्वा मधूनि मधुराणि यथाभिलाषम् । लीलाविनीतवनितासुरतप्रसङ्गः
क्षोणीभृतः क्षणमिव क्षरणदामनेषुः ॥
६. यन्मिथोप्यपिबतां प्रियार्पितं दम्पती मधु
— मि०, १०.६६
तदोष्ठपल्लवः ।
- वसन्त०, ८.५१