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________________ स्त्रियों को स्थिति तथा विवाह संस्था के कारण विशेष रूप से सुखी बना हुआ था । धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य में वरित शृंगारवती तथा धर्मनाथ के दाम्पत्य जीवन भी आदर्श रूप से अनुकरणीय कहे जा सकते हैं । नरनारायणानन्द के सुभद्रा तथा अर्जुन एवं जयन्तविजय में जयन्त तथा कनकवती के दाम्पत्य जीवन भी प्रेमभावना के कारण 3 प्रत्यधिक सुखी थे । अपवाद रूप से पार्श्वनाथ महाकाव्य में वर्णित वसुन्धरा तथा मरुभूति के दाम्पत्य जीवन में पर्याप्त कटुता के दर्शन भी होते हैं। वसुन्धरा अपने पति मरुभूति के प्रति यद्यपि पूर्णासक्त थी तथा ज्येष्ठ भाई कमठ के अपनी श्रोर कामासक्त होने पर वह चरित्र भ्रष्ट भी हो जाती है । वह कमठ के समक्ष प्रात्मसमर्पण कर देती है ।" यशोधरचरित में भी एक ऐसा उदाहरण प्राप्त होता है, जहाँ एक रानी महावत से प्रेम करती हुई दाम्पत्य जीवन के आदर्शों की मर्यादानों का उल्लङ्घन करती है । इसे सम्पूर्ण नारी जाति के कलंक के रूप में freपित किया गया है । ७ वर्षमानचरित महाकाव्य में जन सामान्य से सम्बन्धित गौतम तथा कौशिकी के सुखी दाम्पत्य जीवन का वर्णन भी आया है 15 वर्ष ० में ही राजा मयूरकण्ड तथा रानी कनकमाला भी आदर्श पति-पत्नी के उदाहरण कहे जा सकते हैं । प्रादर्श पत्नियों के गुणों में रूप सौन्दर्य से युक्त होना, विभिन्न प्रकार की प्रेम क्रीड़ानों को सम्पादित करने में दक्ष होना, पति पर अनुरक्त रहना, सत्य बोलना, सरल एवं शान्त स्वभाव होना, दया से युक्त होना, छल-प्रपञ्च तथा मिथ्या भाषण से दूर रहना आदि गुण उल्लेखनीय कहे जा सकते हैं । १० १. प्रद्यु०, ४.२४-२७ २. धर्म०, सर्ग १८ ३. नर०, सर्ग ० ७. ० १५ ४. जयन्त०, ८.६६-७४ ५. पार्श्व ० २.२६-५० " ६. अहो विचित्रं मकरध्वजस्य विडम्बनं स्तम्भितवस्तुबुद्धेः । देवी तु मर्त्याकृतिरुवंशी सा यदीदृशं कामयते निकृष्टम् ।। स्त्रीणामपात्रेऽभिरतिः स्वभावः । शिकी कुशला गेहे गेहिनी चास्य वल्लभा । ४७७ - वही, २.४१ - वर्ध०, ३.६१ ८. ६. वर्ष ०, ५.१५-२० १०. वराङ्ग०, २.६० - ६३; चन्द्र०, १.५२ तथा परि०, २.७ — यशो०, २.३८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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