________________
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
पुत्र-वात्सल्य-प्रेम का अनेक महाकाव्यों में मार्मिक चित्रण हुआ है। वराङ्गचरित में पुत्र वराङ्ग के अपहरण की सूचना पाकर उसकी माता गुण देवी शोकविह्वल होकर मूच्छित हो जाती है ।' माता के लिए पुत्र वियोग का दुःख अत्यधिक असह्य हो जाता था। कभी कभी माताएं अपने पुत्र-वात्सल्य-प्रेम के कारण अपने सौतेले पुत्र के साथ दुर्व्यवहार करती हुई भी चित्रित हुई हैं।
प्रद्युम्नचरित तथा चन्द्रप्रभचरित महाकाव्यों में पुत्र-अपहरण की घटना से माता के अत्यधिक वेदनाशील होने का उल्लेख पाया है। माता के लिए सन्तान वात्सल्य सर्वोत्कृष्ट सुख था ।५ सन्तानोत्पत्ति के बिना स्त्रियां अपना जीवन सार्थक नहीं मानती थीं। समाज में बिना पुत्र वाली स्त्री की प्रायः निन्दा की जाती थी। स्त्री से सन्तान होना ही उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला एक महत्त्वपूर्ण पहलू था। कन्या के रूप में स्त्री
परिवार संस्था के सन्दर्भ में कन्या ही सर्वप्रथम पुत्रवधू अथवा पत्नी के रूप में तदनन्तर माता के रूप में अपनी भूमिकामों का पालन करती है । कन्या के लिए
१. हा पुत्र केन नीतस्त्वमित्युक्त्वा न्यपतद्भुवि ।
-वराङ्ग०, १५.२३ तथा १५.२४ २. तवागतात्र या पीडा सा मे किं न भविष्यति । वरं मे मरणं वत्स जीवितं किं त्वया विना ॥
-वराङ्ग०, १५.२६ तथा कि जीवितेन मम पुत्र विना त्वयाद्य कि राज्यकोशहरिसामजसद्गणेन ।
-प्रचु०,५.११ . ३. न स्यात्सुतः किं नृपतेः प्रियो वा के वा गुणा मत्तनये न सन्ति । ___ ज्येष्ठे सुते राज्यधुरः समर्थे पराभिषेकं तु कथं सहिष्ये ।।
- वराङ्ग०, १२.६ ४. प्रद्यु०, ५.११-१५ तथा चन्द्र०, ५.५७ ५. या स्त्यानमिरिण पुरंध्रिजने प्रसिद्ध
स्त्रीशब्दमुद्वहति कारणनियंपेक्षम् ॥ -चन्द्र०, ३.३२ ६. .धन्याः स्त्रियो जगति ताः स्पृह्यामि ताभ्यो
यासाममीभिरफला तनयनं सृष्टिः ।। -वही, ३.३० ७. ताः सर्वलोकपरिनिन्दितजन्मलाभा
वन्ध्या लता इव भृशं न विभान्ति लोके ॥ -वही, ३.३१