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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
भाग लेने का उल्लेखं पाया है।' राजा महासेन द्वारा युबराज वराङ्ग के राज्याभिषेक होने के समाचार को जानकर उन्हीं की एक दूसरी रानी तथा मन्त्री द्वारा उत्तराधिकारी राजकुमार को पदच्युत करने का सफल राजनैतिक षड्यन्त्र सम्पादित किया गया था जो इस तथ्य का प्रमाण है कि अन्तःपुर में रहते हुए भी राजघराने की स्त्रियां राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं। उधर पुरुष वर्ग भी स्त्री को अपने कार्यों की साधना के लिए प्रयोग में लाते थे। हम्मीर महाकाव्य के एक उल्लेखानुसार यह भी विदित होता है कि हम्मीर अपनी पुत्री का अलाउद्दीन के साथ यदि विवाह कर देता तो वह युद्ध से बच सकता था। हम्मीर की पुत्री इसके लिए तैयार थी किन्तु हम्मीर ने ऐसा नहीं होने दिया।
धार्मिक क्षेत्र में स्त्री
आलोच्य काल में स्त्री प्रत्यक्षतः धर्म की साधना के लिए पुरुषों के समान योग्य मानी जाती थी। जैन धर्म के परिप्रेक्ष्य में यह भी स्वीकार किया गया है कि स्त्री को प्रागार तथा अनागार दो धर्मों की दृष्टि से सर्वप्रथम प्रागार प्रर्थात् गृहस्थ धर्म की ही शिक्षा देनी चाहिए। वैसे स्त्रियाँ प्रायिकाओं के रूप में तपस्या कर अनागार धर्म का सम्पादन करने के लिए भी स्वतन्त्र थीं। वराङ्गचरित के उल्लेखानुसार रानियाँ धर्म कार्य में विशेष रुचि लेती थीं तथा व्रत-उपवास प्रादि धार्मिक क्रियानों का आचरण भी करती थीं।
१. वराङ्ग०, १२.१-३२ २. वयं विशुद्धा यदि च त्वदर्थे अस्मत्सुहृद्भिः सुकृतं यदि स्यात् । निवर्त्य तस्याद्य हि यौवराज्यं सुषेणमास्थापय यौवराज्ये ।।
-वराङ्ग०, १२.१५ ३. सुतां च दत्वा किरीटी कुरु नो निदेशम् । __ मत्प्रदानेन साम्राज्यं चिरं यत् क्रियते स्थिरम् ।।
-हम्मीर०, ११.६०, १३.१०६ ४. हम्मीर १३.१०८-२८ ५. वराङ्ग०, २३ ५६-५७ तथा चन्द्र०, ३.६१ ६. विमुक्तिधर्मप्रविहाय तस्यै प्रोवाच सम्यग्गृहिधर्ममेव ॥
-बराङ्ग०, २२.२० ७. वही, ३१.१-७ ८. वराङ्ग०, १५.१३२-४३ तथा २३.५५-६०, चन्द्र०, ३.६१