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स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था
वातावरण ने नारी की स्थिति को विशेष प्रभावित किया था। भोग्या के रूप में नारी कितनी रामबाण सिद्ध हो गई थी इसका अनुमान लगाना तब और भी सहज हो जाता है जब हम देखते हैं कि नारी युद्ध का कारण थी तथा नारी ही युद्ध शान्ति भी करवा सकती थी । साहित्य संसार में युद्ध पराक्रम वर्णन के समान नारी सौन्दर्य वर्णन को भी मुख्यता दी जाने लगी थी । संक्षेप में मध्यकालीन भारतवर्ष की नारी एक भोग्या की विराट् शक्ति के रूप में समाज पर हावी थी तथा समाज के विभिन्न राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक प्रादि क्षेत्रों में भी उसका यह रूप छा चुका था ।
राजनैतिक क्षेत्र में स्त्री
आलोच्य काल में स्त्री यद्यपि पुरुषों के समान राजनीति में श्रामने सामने भाग नहीं ले पाई थी तथापि युगीन राजनैतिक परिस्थितियों को मोड़ देने में तथा तत्कालीन राजनैतिक वातावरण को स्फुरित करने में उसकी अहम् भूमिका देखी जाती है । इसी राजनैतिक नारी चेतना से अनुप्राणित होकर प्रायः राजा श्रपनी कन्याओं के विवाह सम्बन्धों द्वारा अपनी राजनैतिक शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहे थे । ' अनेक प्रकार के विवाह - प्रकार अधिकांशतः राजनैतिक प्रयोजनों को दृष्टि से ही सम्पादित होते थे । युद्ध के अनेक कारणों में से स्त्री भी एक महत्त्वपूर्ण कारण बनी हुई थी । परराष्ट्र नीति-निर्धारण में भी स्त्रियों के प्रयोग द्वारा अनेक दुःसाध्य कार्यों को साधने का प्रयास किया जाता था । सामन्तशाही राजशक्तियाँ नारी का राजनैतिक प्रयोग करके अपनी दूरदर्शिता का प्रदर्शन करने में लगी हुई थीं तो वहाँ दूसरी ओर नारी शक्ति राजशक्तियों को अपने हाथ का खिलौना भी बनाए हुए थी ।
वराङ्गचरित महाकाव्य में तो रानी द्वारा प्रत्यक्ष रूप से भी राजनीति में
१.
समाज की सर्वव्यापक शक्ति के रूप में स्त्री
समेत्य
तैर्मन्त्रितमन्त्रिभिश्च
कन्याप्रदानं प्रतिनिश्चितार्थः ।
— वराङ्ग०, २.५१
२. चन्द्र०, ६.८६-६६
३.
नसा सुनन्दा परिणीयते चेत्स्यान्मित्रभेदः स हि दोषमूलः ।
—वराङ्ग०, २.२५.