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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
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स्मृति कालीन नारी
बौद्धकालीन नारी मूल्यों की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रथम द्वितीय शताब्दी ई० के लगभग मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में नारी स्वतन्त्रता को पूरी तरह प्रतिबन्धित कर दिया गया । सामान्य जन जीवन में सामाजिक विसंगतियों के कारण नारी प्रतिष्ठा को जो भयंकर आघात पहुँचा था तथा जिसके कारण सार्वजनिक रूप से नारी उत्पीड़न एवं नारी व्यभिचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था उसको रोकने के लिए स्मृतिकार या तो पुरुषों के प्रभुत्व को चुनौती देते या फिर उनकी स्वच्छन्द वृत्तियों से संरक्षित करते हुए नारी को पुरुषायत्त आचारसंहिता से जकड़ देते । मनु आदि स्मृतिकार तत्कालीन परिस्थितियों में पुरुषायत्त समाज व्यवस्था को बदल सकने की स्थिति में नहीं थे । परम्परागत धर्म चेतनाम्रों ने तथा आभिजात्य समाजमूल्यों ने मिलजुल कर नारी की अस्मिता पर जो आघात पहुंचाए थेउनके सन्दर्भ में स्मृतिकारों के पास अब केवल एक ही उपाय बचा था कि वे बचे खुचे नारी सम्मान की, दुर्दानवों से रक्षा करने हेतु स्त्री की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगाएं तथा उसे पारिवारिक पराधीनता की श्राचार संहिता में बाँध दें । सिद्धान्ततः मनु नारी के आदर्श रूप का सम्मान करते थे । परन्तु व्यवहार में उन्होंने धर्म, शिक्षा आदि सभी सार्वजनिक क्षेत्रों में नारी स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित कर दिया । उपनयन आदि संस्कारों के स्थान पर अब केवल 'विवाह विधि' ही उनका वैदिक संस्कार कहलाया जाने लगा तथा पतिसेवा तथा गृहकार्य ही स्त्रियों के क्रमशः गुरुकुलवास तथा अग्निहोत्रादिकर्म के रूप में प्रतिष्ठित होने लगे । 3 स्मृतिकारों की व्यवस्था के अनुसार नारी को पुरुष के समान शिक्षा प्राप्ति तथा व्यक्तित्व विकास करने की पूरी छूट नहीं थी । ४ केवल पुत्रप्रसवनी एवं प्रदर्श गृहणी के रूप में ही उसे अपने पातिव्रत्य धर्म का निर्वाह करना होता था ।
१. पितृभिर्भातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा ।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमप्सुभिः || यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। Altekar, Position of Women, p. 345 ३. वैवाहिको विधि: स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः ।
पतिसेवा गुरौ वासो गृहार्थोऽग्निपरिक्रियाः ॥
- मनुस्मृति, ३. ५५-५६
- मनु०, २.६७
४. Kane: P. V., History of Dharmaśāstras, Vol. II, pt. I pp. 561-62; Wilkins, W. J., Modern Hinduism, Delhi, 1975, p. 186 ५. अभिज्ञान०, ४.१८, १६ तथा द्रष्टव्य -
Indra, The Status of Women in Ancient India, Banaras, 1965, P. 71